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ये मोह मोह के धागे

सूरज जी का परिवार बहुत खुशहाल था । सब भाई आस पास रहते । सुख दुख में साथ होते। अपने अपने काम में   व्यस्त रहते ,सुख शांति से समय बीताते।  सुमित, सूरज जी का बेटा था ।सब बहुत प्यार करते थे । सुमित इंजीनियरिंग कर रहा था। और भारत से बाहर रहने के सपने देखता । बड़ी कार ,एक शाही नौकरी वो भी अमेरिका में। सब बहुत समझाते । माता पिता ,चाचा ,ताऊ जी ,सभी ने समझाकर हार मान ली । उसने इंजीनियरिंग करने के तुरंत बाद अमेरिका में नौकरी के लिए इंटरव्यू दिया था। सबने सोचा वही‌ शादी कर ली तो लौट कर पता नहीं आ पायेगा या नहीं ,वापस । सुमित को धून जो सवार है अमेरिका जाने की । एक पढ़ी लिखी लड़की दूर के रिश्तेदार की, सुमित को  दिखाई ,सुमित को माही एक बार में पसंद आ गयी । उसी दिन अमेरिका से सूचना आई उसे नौकरी मिल गई। नौकरी मिलने से सुमित की खुशी का ठिकाना नहीं था। देश से बाहर नौकरी लगी। रोज माही और सूरज फोन करते रहते। सूरज ने माही से राय पूछने के लिए फोन किया । हैलो माही ! मैं सूरज ।हैलो सूरज!माही मैं सोच रहा था कि शादी के बाद तुम्हे अमेरिका ले जांऊ। वीजा अभी से बनवा लूगां । जब तक नहीं बनता ,तब तक मैं चल

मायका शीतल बयार ससुराल धूप छांव

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नायरा..का आज कालेज का आखिरी दिन था। वो डाक्टर बन गयी थी, जो उसके पिता का सपना था आज वह गर्व से कह सकते थे  कि ,''मैं एक डॉक्टर बेटी का पिता हूं''। खुशी की खबर सुनकर, सब लोगों ने बाहर डिनर पर जाने का प्रोग्राम बनाया। रात को सब तैयार होकर नायरा के मनपसंद होटल में पहुंचे  ,जैसे ही खाना खाकर उठे,  तभी सामने देखा ..नायरा के पापा के बचपन के दोस्त और उनका परिवार वहां आया हुआ था। जाते समय सोचा कि थोड़ा सा मिलते हुए जाए ।पापा और मम्मी दोनो उनकी टेबल की तरफ गए और बच्चो को  वहीं रुकने को कह दिया पापा को देखते ही राजेश अंकल खड़े हो गए और बहुत जोर से बोले,''अरे भाई वाह आज तो मेरा जिगरी दोस्त मिल गया ''।दोनों गले मिले और पापा ने बताया कि, ''अभी हम जल्दी में हैं और मेरा परिवार वहां बाहर   है'' । कल आप आओ घर पर बात करते है ।पापा राजेश अंकल को अगले दिन चाय पर बुला कर आ गए  ।                 अगले दिन सुबह. सब उनके आने के लिए नाश्ते का प्रबंध मम्मी नई-नई चीजें बनाई थी ,जो उन्हें बहुत पसंद थी।          शाम को अंकल ,आंटी अपने बेटे राहुल और बेटी तान्या क

आपका परिवार आपकी हार्टबीट

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आपका परिवार आपकी हार्टबीट.... आप की  दिन के शुरूवात आपके परिवार से शुरू भी, परिवार पर खत्म।शादी से पहले घर की खुशहाली की कामना करते हैं । शादी के बाद ससुराल भी आपके घर का एक और हिस्सा बन जाता है। उसकी भी चिंता होती है । कुछ भी परेशानी हो आप की ही परेशानी बन जाती जाती है ।आप तब ख़ुश होते जब ,सब खुश हो तभी जीवन अच्छे से व्यतीत होता है। आपके माता-पिता ,भाई बहन दूर रहते हैं ।पर आपसे मन से जुड़े होते हैं। आपकी भाई बहन से नाराजगी भी हो, तब भी उनकी परेशानी ,आपको चिन्ता में डाल देती है। ये ही  दिल से दिल का रिश्ता होता है। आपके आस पास परिवार हो तभी आप को त्यौहार  मनाने अच्छे लगते हैं।नहीं तो दूर होने पर भी रिश्तों में कमी अनुभव करते हैं,काश सब होते। भले ही आजकल रिश्तों में दूरी हो गई है।जल्दी मिलना नहीं होता । पुराने समय जैसे रिश्तों का अपनापन नहीं रहा। पर फिर भी फोन ,सोशल मीडिया से जुड़े हुए हैं सब। कहीं दूर भी हो तब भी उनकी जिंदगी में क्या चल रहा है?बच्चे कितने बड़े हो गए ?  सबको पता होता है। बहुत दोस्त बनते हैं पर भाई बहन , माता पिता की जगह कोई नहीं ले सकता। दोस्त नाराज हो जाते ह

दिल की डोर दिल तक

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सुजाता ने अपने बेटे नील के लिए लड़की ढूंढने के लिए सभी रिश्तेदारों, दोस्तों से कह दिया था। उसे एक बहुत अच्छी लड़की की तलाश थी। वह अपने पति राघव से इसी बात की चर्चा करती कि जब दुल्हन इस घर में आएगी तो घर कितना खुशहाल हो जाएगा। चाँद सा टुकड़ा लाऊँगी अपने राजकुमार के लिये नील से भी बार-बार पूछती की लड़की तुझे कैसी चाहिए ? पर नील हँस कर टाल देता था। क्या मम्मी अभी कहाँ ! मुझे बहुत कुछ करना है। उम्मीद नहीं थी कि नील फोन पर अपनी पसंद की लड़की को चुनकर उसके सामने रिश्ते का प्रस्ताव ले आएगा, सुजाता के लिये ये एक बहुत बड़ा धक्का था। शाम को दो कप चाय के साथ सुजाता अपने पति के पास बालकनी में बैठ गई। राघव ने पूछा- क्या हुआ सुजाता ? आज चीनी डालना भूल गई चाय में ? अच्छा... सुजाता का ध्यान विचारों से हटकर चाय की तरफ गया- मैंने ध्यान ही नहीं दिया अभी लाती हूं। सुजाता चाय के लिए चीनी ले कर आई और चम्मच से कप में घुमा कर मिलाती जा रही थी, पता नहीं कैसी होगी नील की पसंद, हमसे घुलेगी मिलेगी की नहीं। मन ही मन उधेड़ बुन में लगी थी। राघव ने कहा, बड़ी चुप-चुप हो क्या बात है ? नहीं, ऐसा कुछ नही

जिंदगी में कुछ कमी सी है।

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नये घर में दुल्हन बन कर आई। सब कुछ नया नया सा। अजनबी एहसास मन को महसूस हो रहा था। सब रिश्तेदार चले गए। रोनित बहुत ध्यान रखते थे। रोनित के और पापा जी आफिस जाने के बाद ,मम्मी जी और मै घर का काम मिलकर करते। शुरू में सामान का अंदाजा भी नहीं था । धीरे धीरे सारा मैने घर मैंने संभाल लिया और रोनित के मम्मी पापा को अपना लिया ।वो भी बेटे से बढ़कर प्यार करने लगे थे।हंसी से सारा घर खुशनुमा रहता। मैं और मम्मी जी खूब हंसते कभी आरती करते समय कुछ ग़लत शब्द निकल जाने पर मुश्किल से रोकते हंसी। और माफी मांग कर दोबारा आरती करते। बहुत कुछ आदत मिलती थी हमारी। कोई मेहमान के आने पर आप कितनी परेशान हो जाती और मैं रसोई में आपको आने नहीं देती कि आप बैठो ,सबके साथ मैं सब कर लूंगी। और सब मेहमान तारिफ करते तो आप ढेरों आर्शीवाद देते देती थी मुझे। पर भगवान को ना जाने क्यूं करना था? जो हम कभी नहीं सोचना चाहते थे। आपकी तबियत खराब होने पर टेस्ट में कैंसर आया। कीमोथेरेपी , रेडियो थैरेपी शूरू हो गयी। आप मुझसे पूछती तो मैं शुगर के प्रभाव बता कर आपको बहलाती। कैंसर नहीं बताना चाहती थी। शायद आपको पता भी चल गया।

अंतर्मन की ऑ॔खे

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अंतर्मन की  ऑ॔खे -------- नैना नाम था  पर   नैनो  मे भगवान  ने रोशनी  ही नहीं दी थी ।नैना नेत्रहीन हुई।  पर सुंदरता मे परी थी ।नैना के पिता आर्मी में थे ।नैना की मां , पिता  नैना का बहुत ध्यान रखते थे ।दोनों उसको कुछ काम नहीं करने देते कि कहीं वह नहीं कर पायी तो.... , वह गिर जाएगी ,उसके चोट लग जाएगी , नैना पूरी तरह अपने मां और पिता पर निर्भर हो गई थी ।लाड़ प्यार में पता ही नहीं चला कि नैना बारँवी कक्षा मे  आ गई।     नैना के पिता के दोस्त आए और उन्होंने नैना के पिता को सूरज को समझाया कि तुम दोनों हमेशा उसके साथ नहीं रहोगे , उस को आत्मनिर्भर बनने दो , नैना के पिता सूरज  ने कहा मुझे और किरण (नैना की मां )दोनों को नैना की बहुत चिंता रहती है ।हम पूरी जिंदगी तो उसके साथ नहीं रह सकते,   पर क्या करे ?वो कुछ कर भी नही सकती । सूरज के  दोस्त ने कहा बारँवी पूरी हो रही है । कंथारी में एक ट्रेनिंग सेंटर है,  वहां उसका एडमिशन करा दो । लीडरशिप की ट्रेनिंग और   आत्मनिर्भर बनाएगी।  सूरज ने बिना देर किये   तुरंत उसका एडमिशन कंथारी में करा दिया ।पर उन दोनों को हमेशा यह चिंता थी  कि नैना जो एक गिलास पा

बचपन में बहुत कुछ छूट गया ।

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बचपन में बहुत कुछ छूट गया..... तुम रोज रोज इतनी मंहगी आइसक्रीम बच्चों को ले आते हो।आदत खराब हो जायेगी। सिया ने नील से कहा। देखो सिया ,बचपन में मुझे कभी महंगी आइसक्रीम नहीं दी पिता जी ने,पर रूपये नहीं थे। और जब थे तब भी नहीं दिलायी।जो मुझे नहीं मिला ,मैं बच्चो को तरसाऊंगा नहीं। नील, तुम्हें समझाकर थक गयी हूं। कम खर्चा करो ।घर में भी जरूरतें है।गुस्से मे सिया  बोली।( कुछ दिन बाद) नील कहां गये थे ? देखो सामने, सिया ने देखा राहिल साइकिल पर! मम्मी ,पापा मेरी बीस गेयर की साइकिल लाये हैं। नील, वो जो रूपये थे बैंक में ,तुमने इतनी महंगी साइकिल पर खर्च कर दिये।वो मकान की किश्त के थे।सिया गुस्से में बोली। सिया ,सब बच्चों पर गेयर की साइकिल थी।उसका तीन दिन बाद जन्मदिन भी है ।सबसे ज़्यादा गेयर की लाया हुं।याद है जब बचपन में सबके पास  साइकिल होती थी , बस मेरे नहीं तो कितना मन दुखता था। बच्चों के साथ नहीं होने दुंगा।नील ने कहा।सिया बहस नहीं करना चाहती थी पर बहुत परेशान रही सारा दिन।  रात को राहिल के जन्मदिन पर बहुत बड़ी पार्टी करने की सोच रहा हुं नील ने कहा तुम क्या कहती हो सिया ? ब