जिंदगी में कुछ कमी सी है।
नये घर में दुल्हन बन कर आई।
सब कुछ नया नया सा। अजनबी एहसास मन को महसूस हो रहा था। सब रिश्तेदार चले गए। रोनित बहुत ध्यान रखते थे। रोनित के और पापा जी आफिस जाने के बाद ,मम्मी जी और मै घर का काम मिलकर करते। शुरू में सामान का अंदाजा भी नहीं था ।
धीरे धीरे सारा मैने घर मैंने संभाल लिया और रोनित के मम्मी पापा को अपना लिया ।वो भी बेटे से बढ़कर प्यार करने लगे थे।हंसी से सारा घर खुशनुमा रहता।
मैं और मम्मी जी खूब हंसते कभी आरती करते समय कुछ ग़लत शब्द निकल जाने पर मुश्किल से रोकते हंसी। और माफी मांग कर दोबारा आरती करते।
बहुत कुछ आदत मिलती थी हमारी। कोई मेहमान के आने पर आप कितनी परेशान हो जाती और मैं रसोई में आपको आने नहीं देती कि आप बैठो ,सबके साथ मैं सब कर लूंगी।
और सब मेहमान तारिफ करते तो आप ढेरों आर्शीवाद देते देती थी मुझे।
पर भगवान को ना जाने क्यूं करना था? जो हम कभी नहीं सोचना चाहते थे।
आपकी तबियत खराब होने पर टेस्ट में कैंसर आया।
कीमोथेरेपी , रेडियो थैरेपी शूरू हो गयी।
आप मुझसे पूछती तो मैं शुगर के प्रभाव बता कर आपको बहलाती। कैंसर नहीं बताना चाहती थी। शायद आपको पता भी चल गया। ना आप मुझे कैंसर बिमारी बताती, ना मैं आपको ।घर में भी कोई जिक्र नहीं करते। ।
आंतों में था कैंसर । बहुत आपरेशन हुए। एक के बाद एक दो तीन बैग पेट में लगा दिये थे।
पर फैलता जा रहा था कैंसर ।
आपकी आंत बहुत कमजोर हो चूकी थी। फिर डॉक्टर ने कहा घर ले जाओ। पर ना पापा जी सुनने को तैयार थे । हम बच्चे भी कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते थे ।पापा जी को ये ना लगे कि आपरेशन के खर्चे की वजह से हम घर ले आये।
आपरेशन फिर हुआ । और उसके बाद आपने घर पर जाने की जिद्द की और हमने पापा जी और बहन का ध्यान रखने का वादा किया ।और आप कह रही थी मुझे जीना है ,मेरे बच्चो के लिए । हमारे बच्चो में मन था ।दोनों पर्याय भी बहुत करते थे।आपको बच्चों को बड़ा होता देखना है बस ये ही कहती रही। जीने की इच्छा लिए
और वो दिन भी आया ,जब आप हमें छोड़कर चली गयी ।
अब भी जाते हैं हर साल घर रहने, पर रौनक नहीं रही ।ना वो निगाहें इंतजार में दिखती है ।ना हमारे लिए हमारी पसंद का खाना बनाकर कोई इंतजार करता है। बच्चे आपको पूछते हैं क्यूं चली गई इतनी जल्दी ? सबकी दादी साथ रहती है ।हमारे पास उनको समझाने
जवाब है पर हमारे मन को नहीं।
पापा जी हमारे साथ हैं। उनको बहुत बार उदास दिलवालों पर टकटकी लगाए देखती हुं तब भी बहुत कमी लगती है ,आपकी मम्मी जी ।आपकी कमी है । कहते हैं किसी के जाने से जिंदगी नहीं रूकती ,पर उसकी कमी भी पूरी नहीं हो सकती।
आप हमारी यादों में बसी हो मम्मी जी
।
मौलिक रचना
अंशु शर्मा
सब कुछ नया नया सा। अजनबी एहसास मन को महसूस हो रहा था। सब रिश्तेदार चले गए। रोनित बहुत ध्यान रखते थे। रोनित के और पापा जी आफिस जाने के बाद ,मम्मी जी और मै घर का काम मिलकर करते। शुरू में सामान का अंदाजा भी नहीं था ।
धीरे धीरे सारा मैने घर मैंने संभाल लिया और रोनित के मम्मी पापा को अपना लिया ।वो भी बेटे से बढ़कर प्यार करने लगे थे।हंसी से सारा घर खुशनुमा रहता।
मैं और मम्मी जी खूब हंसते कभी आरती करते समय कुछ ग़लत शब्द निकल जाने पर मुश्किल से रोकते हंसी। और माफी मांग कर दोबारा आरती करते।
बहुत कुछ आदत मिलती थी हमारी। कोई मेहमान के आने पर आप कितनी परेशान हो जाती और मैं रसोई में आपको आने नहीं देती कि आप बैठो ,सबके साथ मैं सब कर लूंगी।
और सब मेहमान तारिफ करते तो आप ढेरों आर्शीवाद देते देती थी मुझे।
पर भगवान को ना जाने क्यूं करना था? जो हम कभी नहीं सोचना चाहते थे।
आपकी तबियत खराब होने पर टेस्ट में कैंसर आया।
कीमोथेरेपी , रेडियो थैरेपी शूरू हो गयी।
आप मुझसे पूछती तो मैं शुगर के प्रभाव बता कर आपको बहलाती। कैंसर नहीं बताना चाहती थी। शायद आपको पता भी चल गया। ना आप मुझे कैंसर बिमारी बताती, ना मैं आपको ।घर में भी कोई जिक्र नहीं करते। ।
आंतों में था कैंसर । बहुत आपरेशन हुए। एक के बाद एक दो तीन बैग पेट में लगा दिये थे।
पर फैलता जा रहा था कैंसर ।
आपकी आंत बहुत कमजोर हो चूकी थी। फिर डॉक्टर ने कहा घर ले जाओ। पर ना पापा जी सुनने को तैयार थे । हम बच्चे भी कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते थे ।पापा जी को ये ना लगे कि आपरेशन के खर्चे की वजह से हम घर ले आये।
आपरेशन फिर हुआ । और उसके बाद आपने घर पर जाने की जिद्द की और हमने पापा जी और बहन का ध्यान रखने का वादा किया ।और आप कह रही थी मुझे जीना है ,मेरे बच्चो के लिए । हमारे बच्चो में मन था ।दोनों पर्याय भी बहुत करते थे।आपको बच्चों को बड़ा होता देखना है बस ये ही कहती रही। जीने की इच्छा लिए
और वो दिन भी आया ,जब आप हमें छोड़कर चली गयी ।
अब भी जाते हैं हर साल घर रहने, पर रौनक नहीं रही ।ना वो निगाहें इंतजार में दिखती है ।ना हमारे लिए हमारी पसंद का खाना बनाकर कोई इंतजार करता है। बच्चे आपको पूछते हैं क्यूं चली गई इतनी जल्दी ? सबकी दादी साथ रहती है ।हमारे पास उनको समझाने
जवाब है पर हमारे मन को नहीं।
पापा जी हमारे साथ हैं। उनको बहुत बार उदास दिलवालों पर टकटकी लगाए देखती हुं तब भी बहुत कमी लगती है ,आपकी मम्मी जी ।आपकी कमी है । कहते हैं किसी के जाने से जिंदगी नहीं रूकती ,पर उसकी कमी भी पूरी नहीं हो सकती।
आप हमारी यादों में बसी हो मम्मी जी
।
मौलिक रचना
अंशु शर्मा
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