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Showing posts from January, 2019

अपने बेगाने

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अरे!बड़ी बहु क्या बाल इतने गीले है और पंखे मे बैठी हो जाओ धूप मे ,सर्दी जुकाम हो जायेगा। क्या मम्मी जी कुछ नही होता ।नही बेटा जाओ ।बड़ी बहु पैर पटकती हुई बाहर चली गयी। क्या है! मेरे को ही तो होगा जो होगा ,मम्मी जी को भी क्या पड़ी रहती है। छोटी बहु रोहिता को आवाज लगायी ,हाँ जी मम्मी छोटी बहु ,जरा पापा जी को एक कप चाय बना दो । मै जरा मिर्च का अचार डाल रही हुँ। छोटी भी बे मन से चली गयी। रोहिता बहुत ध्यान रखती बहुओ को बेटी की तरह पर बहुओ को अपनापन नही  दखल अन्दाजी लगती। रोहिता और मोहित के दो बेटे ,दो बहुऐं ,एक बेटी थी। दोनो बेटे बहुत प्यार से रहते थे ।एक बेटी उसकी शादी हो गयी थी। रोहिता अपनी बेटी को ससुराल भेज कर निश्चिंत थी। बेटी से हमेशा कहती तुम गई और मेरी दो बेटियां घर में आ गई है अब तेरा सारा प्यार उस पर उन दोनों पर लूटेगा जल्दी जल्दी आना अपना प्यार लेने के लिए । खुशहाल जीवन था ।रोहिता अपने पति मोहित के साथ बहुत अच्छे से समय बिता रही थी ।बहू को भले ही उनका प्यार दखलंदाजी लगता था पर फिर भी घर में खुशहाली ही थी ।बहुओ की बातो को बचपना समझ कर हँस देती ,कहती उनकी बेटी रोली होती तो वो

प्यार बेशुमार

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माही की शादी रवि से हुए दस दिन हुए कि बराबर मे वर्मा जी के बेटे की सगाई मे जाना था ।माही गहरे काफी रंग की सुनहरे किनारी की  साड़ी पहन कर आई तो उसकी सास माया ने तुरंत बोल दिया ,ये क्या माही बेटा तुम अभी नयी दुल्हन हो ये रंग नही पहन कर जाना ,जाओ लाल , हरी या मेहरून साड़ी बदल आओ।   माही के चेहरे का रंग उड़ गया । उसने तो क्या क्या सोचा था कि सब तारिफ के पुल बाँधेगेंं। एक नजर रवि पर गयी शायद वो कुछ जवाब दे कि'' माही पर खिल रही है ये साड़ी,बदलने की क्या जरूरत'' पर रवि ने कुछ नही कहा और चली गयी बदलने  पर गुस्से से मुड खराब हो गया ।मैचिंग नेलपालिश ,गले का सेट ,चुडियाँ सब को  मैच करने मे कितना समय लग गया था अब दोबारा ये सब बदलना ..तभी  रवि ने  गले लगाकर कहा परी लग रही हो पर माँँ ये रंग कम पसंद करती है उन्हे अपनी बहु सबसे सुंदर जो दिखानी है  ,कोई नही माँ का मन रखने को पहन लो  और  प्यार  के आगे   गुस्सा भूल गयी माही  ।      सगाई मे जाकर बस मुस्कुरा कर आ गयी। आते ही सासु माँ  खुश हो कर बता रही थी कि सब माही की तारिफ कर रहे थे ।लाल साड़ी मे बहुत सुंदर लग रही थी । अच्छा है वो का

अतीत की ओर भविष्य

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भानु चप्पल बहार उतारो सारा घर गंदा कर दिया ।मम्मी हम पहले  से ही घर में चप्पल लेकर आते हैं ।आप जब से पूना आई हो तब से उन लोगों की देखा देखी कहती हो इसमें गलत क्या है बेटा ,कुछ चीजें अच्छी सीख ले तो बुराई क्या है ?पहले के लोग भी घर में आते हुए चप्पल उतारकर वही बाल्टी पानी की भरी होती थी ।पैर हाथ मुंह धोकर ही करने आते थे या यह कह लो तुम्हारी  विज्ञान की भाषा में बैक्टिरिया  घर में नहीं आते और वैसे भी घर साफ तो रहता है ।क्या मम्मी टोका करती रहती हो। शीतल बच्चों बच्चों के साथ क्यों उलझती  रहती हो ।तुम भी तो बचपन से ही ऐसी चप्पल लेकर ही आती थी ।अब जब से पूना आई हो तब शीतल तुनक कर  की रसोई की तरफ बढ़ गई ।आप लोगों से तो कुछ कहना ही बेकार है। शीतल याद है ना शाम को मिस्टर भल्ला और मैसेज भल्ला रहे हैं हाँँ जी याद है आप ऑफिस से वापस आते समय नाश्ता लेते आना। हाँँ ठीक है 5:00 बजे मुझे फोन करके याद दिला देना और यह कहते हुए मयंक घर से बाहर निकल गए। भानु जरा बेटा पनीर का एक दो पैकेट ले आना शीतल ने रसोई से आवाज देते हुए कहा मां मैं भी नहीं जा सकता बाइक लेकर पापा चले गए हैं अरे तो साइकिल से ले आ।

खीचे तेरी ओर प्यार की डोर

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कैसी घड़ी है दुविधा घेरे खड़ी है ,अनजानी उलझन है,  शायद मैं परेशान हूँँ... आज इस मोड़ पर, दुख के इस छोर पर मैं हैरान हूँँ   , शायद मैं परेशान हूँँ। वक्त के साथ लोग पीछे छूट जाते हैं पर यादों को भुला नहीं पाते हैं  मीठी यादों के घेरे में , आज मैं हैरान हूँँ शायद मैं परेशान हूं ...  यह कैसी रीत है,  कैसा है फसाना, तुम्हें हमें छोड़कर दूर है जाना  जहां भी जाओगी,  ना हम भूल पाएंगें, ना तुम भूल पाओगी   सोचती हूं तुम्हारे जाने से  ,कितनाअकेला पाती हूँँ मैं ,    बीते लम्हों को याद करके  ,  मैं हैरान हुँ.... शायद  आज मैं परेशान हुँ..... कैसे रह पाऊँगी मौली के बिना ? बस राखी ने मन  की बेचैनी डायरी मे लिख डाली  और बंद कर दिया डायरी को । सब मेहमान चले गये ,चाय पीने का मन भी था  पर बनाने की बिल्कुल़ इच्छा नही ,  सिर दर्द भी हो रहा था  । शायद आराम मिले सोच कर  उठने लगी तो मानव दो कप चाय बनाकर ले आये ।ये लो अदरक की तेज पत्ती की चाय  ।अरे आपने क्युं बना ली ।  आज हमारी  लाडो विदा हुई    तो सूना लग रहा है घर । कप लिये दोनो खिडकी के पास बैठ गये जहाँ अकसर बैठते और बाहर का मौली को खेलता

कहीं ऐसा ना हो जाये

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गौरी को पाँच साल हो गये  शादी करके आये।वो प्यार के पल कैसे बीत गये तुषार के साथ पता ही नही चला । सब आसपास के कहते जैसे नयी नयी शादी हुई हो। बस एक कसक थी कोई बच्चा नही था ।इलाज करा कर थक गये ।कोई उम्मीद भी नही रही ।तुषार ने गौरी को इतना संभाला कि बच्चे की याद आकर उदास  होती  तो तुषार कुछ सरप्राइज देता कि दर्द भूल जाती ।  तुषार की दोस्ती माला से हुई बराबर का ही केबिन था । माला सुंदरता की मिसाल थी,जो देखता देखता रह जाता ।सोच ,पहनावा आजकल के जमाने का । तुषार से काम के सिलसिले मे बाते होती रहती ।माला की शादी नही हुई थी ।अभी नयी थी शहर मे ।आफिस के गेस्ट हाउस मे रूकी थी ,आफिस कि तरफ से एक महिने को मिलता है जब तक घर ना ढुंढ  ले। तुषार ने अपने घर के ऊपर मकान दिलाने मे मदद की थी। पड़ोसन बन कर आ गयी थी  माला । गौरी भी अकेले होने कि वजह से माला का ध्यान रखती । दोनो मे दोस्ती होने मे ज्यादा समय नही लगा । गौरी कुछ भी बनाती माला को भेजती ।माला भी तारिफ करते नही थकती। माला  ,गौरी के करीब आ गयी थी ।बच्चा ना होने कि वजह से गौरी, माला को अपना दर्द बताती ,माला की गोद मे सिर रख कर बड़ी बहन की तरह रो ले

प्यार की हथकडियाँ

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बसंत आफिस से थका हारा घर आया और सोफे पर सिर टिकाये आँखे बंद  पीछे की ओर टेक लगा ली और बोला  आज बहुत काम था आफिस मे।  नूरी चाय ले आई बसंत ने जैसे ही चाय ली , नूरी तुम्हे  कितना ही अच्छा ला दो पहनोगी बेकार पूराना ही ,नूरी ने ध्यान दिया वो पूराना हल्दी लगा गाउन पहने हुए थी जिसे बसंत बहुत बार मना कर चुका था ।वो नया आने जाने के लिये रख दिया ।नूरी को पता था कि ऐसा ही होता था ,बसंत को गंदे कपडे़ पसंद नही थे।  बसंत ने कहा आने जाने के लिये भी लेने को किसने मना किया  एक और ले ले ती । एक तो थके हारे घर आओ और एक तुम ये सब करके परेशान करती हो ।अगर मेरे साथ कोई दोस्त आ जाता तो इतना गंदा हल्दी ,घी के निशान लगे देखता क्या सोचता ?वो भी बात रहने दो अगर तुम अच्छा पहनोगी कि तो खुद तुम्हे अच्छा महसुस होगा ।  टिप-टाप रहा करो नूरी । बात खत्म हो गयी          कुछ दिन बाद बसंत आया  हँसते हुये बोला , क्या बात बडे़ खुश हो नूरी ने भी पूछा ..हाँ नूरी जल्दी से तैयार हो जाओ हम डिनर पार्टी करने बाहर जा रहे है ,सौरब और उसकी पत्नी आते ही होगें ,साथ जा रहे है  एक दोस्त की पार्टी है ,अचानक  प्लान बना  ,कल  इतवार भी

बुढ़ी अम्मा

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बेसुद  होकर खड़न्जे (ईटो से बनी सड़क) पर भागती एक बुढी औरत ,लगभग सत्तर साल  होगीं। ऊँची सी हल्के बादामी रंग की सूती धोती पहने, बांये हाथ मे ईट का टुकड़ा । मुड  मुड कर देखती  बार बार हाथ से मारने का  इशारा करती , पीछे छोटे छोटे बच्चे पत्थर मारकर पागल, पागल बोल रहे थे ।वो बुढी औरत ..कहती मारूँगी ,पागल कौन ?मै नही पागल ,मारूँगी  ...जाओ जाओ भागो यहाँ से ...बच्चो को कह रही थी ।  थकान से चकनाचुर  थी, पैर आगे नही पड रहे फिर भी भाग रही थी ।कही पत्थर ना मारे बच्चे। शायद माथे पर कोई नुकिला पत्थर लग भी गया था। खुन निकल कर आँख तक आ गया। जोर से ठोकर लगी और गिर गयी ।बच्चे मारने के लिये कभी कमर छु रहे थे,  कभी पैर ।वो जोर से हाँफती हुई बोली ,भागो घर जाओ ।बच्चे  जोर से कहने लगे जैसै बुढी अम्मा की आवाज सुनायी नही दे रही हो। तभी एकाएक जोर से आई आवाज ने  बच्चो की आवाज रोक दी....ऐऐऐ कौन है ?किसको परेशान कर रहे हो ? एक काटन की साड़ी पहने  चश्मा लगाये एक औरत आती दिखायी दी।शायद वो रोज शैतान बच्चो को देखती थी ।बच्चे बोले ,पागल है और भाग गये । पागल सुनकर पैर रूक गये ।वो मृदुला थी ,पास के कालेज मे पढाती थी। मृद

एक गलत कदम

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चाहत एक चुलबुली लड़की थी। अपने पापा मम्मी की राजदुलारी । पापा , मम्मी ये ,वो सारा दिन कुछ ना कुछ मन लगाने के लिए बोलती रहती। इस साल उसने बाँँरवी  पास करके बी.एस.सी में एडमिशन लिया था । बी.एस.ई के साथ  , बैंक की कोचिंग मे भी एडमिशन अभी लिया था। उसकी यह तमन्ना थी । कि वह बैंक में नौकरी करें,पर यह ऐसा समय होता है अगर सही दिशा मिल जाए तो रास्ते खूबसूरत दिखाई देते हैं । और मंजिले आसान हो जाती और यही दिशा अगर गलत राह पर चली जाए तो रास्ते भी दिखाई नहीं देते ,और अगर दिखाई भी दे जाए तो उस पर इतने पत्थर और कांटे मिलते हैं ,कि मंजिल तक पहुंचना असंभव हो जाता है ।        यही कुछ चाहत के साथ भी हुआ।  एक दिन  कॉलेज मे  वह लाइब्रेरी गई और वहां उसे एक जिस किताब की जरूरत थी। उसी को लेने के लिए एक लड़का खड़ा था ।लाइब्रेरियन ने कहा कि यह एक ही किताब है उस लड़के  का नाम शोभित था।  शोभित ने तुरंत कहा ,''आपको जरूरत है आप ले लीजिए ''।मैं आपकी बाद ले लूंगा। चाहत ने कहा थैंक्यू !और वह किताब ले कर चली गई। जब लौटाने आई तब शोभित वही था । शोभित को थैंक यू कहकर वह लाइब्रेरी में पढ़ने बैठ