कब तक रोकोगे ?

एक छोटा सा गाँव नाम था यमुना नगर ।मै नैना अपने माँ ,बाबा के साथ रहती थी ।जब छः साल की हुई तो हमेशा माँँ ,बाबा का ध्यान रहता कि कहाँ गयी किसके घर गयी है शायद मै अपने माँ ,बाबा की प्यारी नैना थी जिसे वो अपनी आँखो से ओझल नही देना चाहते थे या ये सर्तकता थी जो रोकती थी.....कि आजकल का जमाना विश्वास का नही था, माँ को अकसर कहते सुना नैना को ज्यादा मत भेजो किसी के घर जमाना खराब है।
           बारह तेरह साल की उम्र मे ज्यादा ध्यान दिया जाने लगा किसी पडोस मे जाने पर समय बता दिया जाता घर छः बजे तक आ जाना अगर जरा देर होती तो माँ घबरा जाती और लेने पहुँच जाती पडोसी को बहाने बना देती कि नैना का खाने या सोने का समय है ।ये भी उनका डर और प्यार दोनो थे। तब तक मुझे भी उनकी बात समझ आने लगी थी।  कालेज मे आ गयी थी पढाई मे बहुत तेज थी हमेशा फस्ट आती माँँ ,बाबा तारिफ मे फूले ना समाते। कालेज मे आगे जाने के लिये शहर जाना था माँ ,बाबा को कोई एतराज नही था पर आस पडोसी माँ बाबा को कुछ ना कुछ सुनाते लडकी को दूर भेजना ठीक नही कुछ ऊँच नीच ना हो जाये , लोग बाते बनायेगेंं।माँ बाबा ने मेरे और अपने मन की सुनी कालेज जाने लगी थी मै शहर, गाँँव के लोग रोकने मै नाकामयाब रहे। माँ बीमार रहने लगी ,मै कालेज जाने से पहले घर का सब काम कर लेती और आने के बाद भी सब सभाँल लेती।ये बात और थी कभी बाबा शाम को कालेज के बाहर मिल जाते पूछने पर बहाना मिलाते कि काम से आया था, मुझे पता था बाबा का डर कही ना कही समाज ने ला ही दिया था ,मै भी मुस्कुराकर बाबा का हाथ पकड लेती और घर आकर माँ को सुना कर खुब हँसती।कालेज मे मैनै टाप किया ,माँ ने मिठाई बनाई और आस पडोस मे बाँँटी ये बात और थी कि गाँव मे कुछ खुश नही थे।पर कुछ ऐसे भी थे जो अपनी बेटी को पढने भेजने लगे ।मै भी कुछ बच्चो को टयूशन पढाने लगी ,और पास के स्कूल मे बिना बी०एड० किये पढाने लगी।कालेज जो पास किया था।घर का काम और स्कूल ,टयूशन मै समय बीत जाता और कुछ रूपये भी घर का सहारा बन गये थे। माँ का इलाज आसानी से होने लगा था। 
एक दिन एक रिश्ता आया  ,मेरे मना करने पर भी मेरा रिश्ता कर दिया गया, मै आगे पढने की सोच ही रही थी पर माँ के इलाज मै रूपये खर्च होने की वजह से मेरे और बाबा के सारे रूपये खत्म हो जाते ,सोचा प्राइवेट फार्म भर दूंगी।पर रिश्ता होने की वजह से मै टूट गयी ,वैसै भी मै माँ को दुखी नही करना चाहती थी अपना भाग्य समझकर  चुप थी पर कुछ बनने की कसक रह गयी ।मेरी दूर की मासी ने रिश्ता बताया था  शादी मंयक से हो गयी। मंयक दहेज के खिलाफ थे ,बैंक मै नौकरी थी , ये ही गुण बहुत थे ,मंयक और उनके परिवार मे सब अच्छे थे। पर ना उन लोगो ने पढने को पूछा ना ही मैने बताया। मेरी नंद तनु पढ रही थी उसे कुछ समझ नही आता या हेल्प चाहिये होती तो मै तैयार थी, दिवाली आने वाली थी  घर की सफाई मे मुझे बैंक की प्रतियोगिता की किताबे मिली ,और मै उनको लेकर अपने कमरे आ गयी।कुछ पढने का शौक था खाली समय उसे ही पढती । एक दिन मंयक ने देखा और हँसके बोला ये तुम पढती हो ,तुम्हारे बस की बात नही , दिल बहुत दुखा पर मैनै डरते हुये कहा नही नही बस ऐसे ही खाली समय मे ।ये कहकर मै काम मे लग गयी ।
एक दिन तनु को कुछ नही समझ आ रहा.था मैने उसे समझा दिया तभी तनु ने कहा भाभी अपनी मार्कशीट दिखाओ मैभी टापर थी खुशी खुशी सब दिखा गयी।तनु तारिफ करने लगी आप तो बहुत होशियार हो फिर आगे पढना या नौकरी क्यो नही करती । आज मेरा दिल बहुत कुछ कहना चाहता था ।पर मैनै अपनी शादी की मजबूरी बता कर ,टाल दिया । अगले दिन तनु मेरे लिये बैंक की प्रतियोगिता की न्यू एडिशन की किताब ले आई  मेरे मना करने पर भी वो दे गयी भाभी खाली समय के पढने के लिए है ऐसे ही ले आई ,शायद उसने मेरे मन की बात जान ली थी। और वो रोज समय मिलने पर नेट सिखाती,  कभी मेरे साथ पढती, रोज हम मिलकर कौन बनेगा करोडपति के प्रशन हल करते।या क्वीज खेलते ,त्योहार पर माँ , बाबा से मंयक मिला लाते थे।साल बीत गया।
मै भी जल्दी काम करने का सोचती और पढने बैठ जाती पता था इस बात का कोई अर्थ नही पर फिर भी पढने मे मुझको अच्छा लगता। तनु भी नेट खोलकर मुझे कुछ ना कुछ बताती बहुत महिने हो गये।एक दिन सुबह तनु ने कहा,," भाभी कल आपको मेरे साथ बाजार जाना है जरूरी काम है"।मैने भी हाँ कर दी। सुबह घर का काम तनु ने मिलकर खत्म कर लिया ।और माँजी से आज्ञा भी ले ली थी।रास्ते  मे तनु ने मेरा हाथ पकड कर कहा,"भाभी माफ करना मैनै झूठ बोला आज मै आपको अपने नही आपके काम से लाई हूँ।घर मे कोइ इस बात के लिये तैयार नही था इसलिये छिपाना पडा, मै डर से अचंम्भित क्या तनु जल्दी बताओ मुझे डर लग रहा है ...तनु डरते.हुए बोली वो.भाभी मैनै आपकी मार्क शीट की फोटो कापी करा कर बैंक का फार्म भर दिया था इसलिए ही नेट से आपको बताती थी पढकर।आज आपका बैंक का पेपर है आपको डरना नही ,बस एक बार पेपर दे दो आपके भी मन मे खुशी होगी अगर नही भी आई तो ये तसल्ली तो होगी कि मैने कोशिश की। लाख मना करने पर तनु नही मानी ,उसका मन रखने के लिये मैनै पेपर दिया ।रिजल्ट का कोई इंतजार नही था क्योकि कुछ सोच कर पेपर नही दिये थे।
आज तनु ने सबको अचम्भे मे डाल दिया ये बता कर कि उसने कैसे मुझे पेपर दिलाया सबका गुस्सा सातवे आसमान पर था पर सब तनु को ही डाट रहे थे।मै डर के मारे रोने लगी माँ जी तनु को मत डाटिये,  मै नही आँँउगी ,आ भी गयी तो जैसा आप कहेगें वो ही होगा, सब इतना सुनकर शांत हो गये  पर घर मे एक चुपी थी । तनु का रिजल्ट आ गया वो फस्ट आई थी ,सबका ध्यान मुझ से हटकर खुशी मे लग गया।तनु  को आगे की पढाई की तरफ ध्यान देने को कहने लगे । वो सी०ए० की तेयारी करना चाहती थी सब मान गये थे।
एक दिन तनु ने मुझे तैयार होने को कहा किसी के फंकशन मे जाना था ,वो जहाँ जाती मुझे साथ ले जाती थी मै बिना ज्यादा पूछे तैयार हो गयी।एक होटल मे जाते ही माँ, बाबा को देखकर मेरे आँसु खुशी से बहे जा रहे थे।दोनो के गले लग कर ।माँँ,बाबा की आँखे आँसुआओ से भीगी थी।तब बस मुझे माँ बाबा ही दिख रहे थे ।मै भूल गयी कि माँजी , बाबू जी मंयक भी थे मैने जैसे ही देखा अपने को सभांल.लिया ,माँ आप दोनो यहाँ कैसै ? बाबा ने मंयक की तरफ देखते हुये कहा दामाद जी ले आये बताया भी नही क्यो??
इतने मे सब तालियाँ बजाने लगे । तनु ने बताया बैंक का पेपर पास कर लिया था मैनै। मुझे यकिन ही नही हो रहा था...मैनै कैसै ये कर लिया और जो मेरे पेपर देने से खुश नही थे वो आज खुश कैसै?मंयक ने बताया तनु ने हमारी ना को हाँँ मे बदलवाया।कि वो भी किसी की बहु बनेगी ,अगर उसकी ससुराल वाले भी उसे नौकरी ना करने दें तो !सबको तब से रोज समझाती थी, आज जब सलेक्शन हो गया तब सब खुश थे । आज नैना का मन भी कह रहा था लगन और भगवान का साथ हो तो रास्ते अपने आप निकल आतै है तनु को गले से लगा रोये जा रही थी....उसे लग रहा था जैसे तनु सबसे कह रही.हो......कब तक रोकोगें.......
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धन्यवाद...

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