आओ अनाथालय को वृद्धाश्रम से मिलाये
आओ एक कदम उठाये क्यों ना वृद्धाश्रम को अनाथालय से मिलाये.....बेबस खड़ा राह निहारे, काश कोई आता देने सहारे
जिसको पुकारूँ अम्मा -बाबा,गोदी में उठा ले वो कह के बाला
मैं उनकी खुशियों का बन जाऊं सहारा
हम मिले... हो परिवार हमारा
उनको बच्चे की चाहत, मुझे अम्मा बाबा,
बन एक दूसरे के हम पूरक हो जाएँ|
क्यूंं ना वृद्धाश्रम को अनाथालय से मिलायें।
ये मेरे मन के विचार हैं हो सकता है कोई सहमत ना भी हो पर मुझे हमेशा लगा बुजुर्गों को सुनापन दूर करने के लिये कोई तो सहारा चाहिये ।बच्चों को उनका अनुभव ,सीख मिलेगी जो सयुंक्त परिवार में दादा-दादी ,नाना-नानी से मिलती है और दोनों एक दूसरे का सहारा होंगे। जो इन्हें छोड़ गये उन्हें याद करने के बजाय खुशियाँ एक दूसरे में ढूंढेगे। आजकल बहुत सुविधा हो गयी है अनाथालय में ,और वृद्धाश्रम में भी बहुत ध्यान रखा जाता है ।अगर ये दोनों मिला दिए जाये तो एक दूसरे के पूरक हो जाएं।बड़ों को बच्चों का साथ मिले ,हँसने ,बोलने से जिन्दगी जीनी और आसान हो जाये।
बहुत दुख होता है जब बिना माता-पिता के बच्चों को देखते हैं कुछ करने की चाहत तो है देखो कब पूरी हो। और जब भी बुर्जुग को वृद्धाश्रम में बच्चे छोड़ जाते हैं क्या बीतती होगी उन पर? आपके विचार नही मिलते सोचो बहुत बार पति पत्नी के भी नही मिलते ,बच्चे भी नही सुनते तो क्या रिश्ते तोड़ देते हैं ।बुजुर्ग माँ बाप के लिए दो-तीन वक्त की रोटी देनी अखरती है। अपने लिये चाहे दस पकवान बनाने हो ,खुशी से बन जायेगें। दुख होता है ये सब देखकर...अनाथालय और वृद्धाश्रम जाये उनके साथ थोडा समय बिताये। उनके लिये कुछ कर सकते हे तो जरूर करिये ।
एक सोच...क्यों ना वृद्धाश्रम को अनाथालय से मिलाये....
धन्यवाद
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