विदाई...
- दुल्हन की विदाई--
अतिथियोंका आगमन और चहल पहल ,दूर कर रही थी तन्हाईयाँ।
सजी दुल्हन का मन मोहक रूप ,जीवन की बता रहा था सच्चाईयाँ।
बचपन बीता ये घडी़ आई , दुल्हन को घेर रही थी उदासी और तन्हाई।
पर लग था देखकर उसका रुप, जैसै सूरज ने बिखेर दी हो धूप
बाल घटा का दे रहे थे इशारा,लाल चुनरिया ,टीका था जगमगा रहा ।
रौनक का ये पहर , दुल्हन पर ढा रही थी कहर।
नये जीवन में प्रवेश ,दे रही थी.नया सन्देश
भूल जा बाबूल की गली, याद कर ले नयी गली।
ये कैसी रीत है ,कैसा है फसाना
अपनो को पराया ,परायो को अपनाना
घर से निकलने पर हो रही थी उसकी विदाई
पर उसको आज सारी दुनिया, लग रही थी.पराई.......
ये सच ही है की एक लडकी को अपने घर से दूर होना पडता है उसके मन मे ना जाने कितने सवाल ,कैसै रहुंंगी सब से दूर ?कैसै होगें वहाँ सब ? अनगिनत सवालो के घेरे मे उलझी सहमी दु्ल्हन की सोच, कब मिल पाँँउगी सबसे ? अनजानी डगर पर दुसरे परिवार का प्यार मिलते ही वो प्यार के साथ रिश्तो को अपनाकर आगे जिन्दगी को खुशनुमा बना देती है....
विदाई के समय जो दुनिया पराई लग रही थी वो ही अपने हो जाते है...। यही जिन्दगी की कहानी सबके साथ है दोनो परिवार के सहयोग से जीवन और भी रगों से भरा हो जाता है और अगर ये प्यार ये साथ ना हो तो जिन्दगी बेरंग लगने लगती है और रिश्ते पूरे होकर भी अधूरे हो जाते है ।कहा भी गया है कुछ कदम तुम बढो ,कुछ कदम हम बढे और इस तरह रास्ते जिन्दगी के आसान हो जाएगें ।और इसी तरह माँ से विदाई का सफर और माँँ बनने की शुरुवात का सफर..।
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धन्यवाद
डिस्क्
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