एक गलत कदम

चाहत एक चुलबुली लड़की थी। अपने पापा मम्मी की राजदुलारी । पापा , मम्मी ये ,वो सारा दिन कुछ ना कुछ मन लगाने के लिए बोलती रहती। इस साल उसने बाँँरवी  पास करके बी.एस.सी में एडमिशन लिया था । बी.एस.ई के साथ  , बैंक की कोचिंग मे भी एडमिशन अभी लिया था। उसकी यह तमन्ना थी । कि वह बैंक में नौकरी करें,पर यह ऐसा समय होता है अगर सही दिशा मिल जाए तो रास्ते खूबसूरत दिखाई देते हैं ।

और मंजिले आसान हो जाती और यही दिशा अगर गलत राह पर चली जाए तो रास्ते भी दिखाई नहीं देते ,और अगर दिखाई भी दे जाए तो उस पर इतने पत्थर और कांटे मिलते हैं ,कि मंजिल तक पहुंचना असंभव हो जाता है ।
       यही कुछ चाहत के साथ भी हुआ।  एक दिन  कॉलेज मे  वह लाइब्रेरी गई और वहां उसे एक जिस किताब की जरूरत थी। उसी को लेने के लिए एक लड़का खड़ा था ।लाइब्रेरियन ने कहा कि यह एक ही किताब है उस लड़के  का नाम शोभित था। 
शोभित ने तुरंत कहा ,''आपको जरूरत है आप ले लीजिए ''।मैं आपकी बाद ले लूंगा। चाहत ने कहा थैंक्यू !और वह किताब ले कर चली गई। जब लौटाने आई तब शोभित वही था ।
शोभित को थैंक यू कहकर वह लाइब्रेरी में पढ़ने बैठ गई। धीरे धीरे यह सिलसिला चलता रहा और शोभित अक्सर उससे लाइब्रेरी में मिल जाता ।
           चाहत का ध्यान पढ़ाई से हटकर शोभित को ढुंढने मे लगने लगा  था,  अगर वह नहीं आता  तो वह बार बार लाइब्रेरी के चक्कर लगा लेती।धीरे धीरे बातों का सिलसिला शुरू हो गया और दोनों मिलने लगे ।कहाँँ चाहत के मम्मी पापा सोच रहे थे कि चाहत पढ़ाई करने के लिए कितनी मेहनत कर रही है ,और यहां उसकी दिशा कुछ  उल्टी  दिशा  ले रही थी। साल निकल रहा था ग्रेजुएशन में चाहत और शोभित दोनों की ही नंबर अच्छे नहीं आए थे और कंपटीशन के लिए भी वह दोनों सेलेक्ट नहीं हुये ।

पापा हमेशा समझाते ,''चाहत देखो ये समय पढाई का है  ,पढ़ाई की तरफ और ध्यान  दो,समय   हाथ से निकल जायेगा'' ।उसे बैंक में नौ
करी करनी है, यह सही  समय है। 
        पर चाहत के सिर पर तो जुनून सा सवार था शोभित की प्यार का,  उसे कुछ पापा और मम्मी की बातें समझ नहीं आ रही थी  ।हाँ मम्मी पढ तो रही हुँ । मम्मी ने सिर  पर हाथ रखकर  अच्छा ठीक है , काम मे लग गयी ।पापा ने भी कहा ,'' चाहत कोई नही एक बार  सलेकशन  नही हुआ तो  क्या !जोश से तैयारी करो । और गले लगा लिया मेरी प्यारी बिटिया....।
      
उनको पता था हर बच्चे अलग क्षमता अलग होती है।पर ये नही पता था कि उनकी प्यारी बेटी  के दिमाग मे पढायी नही ,कुछ और ही है। चाहत के पापा ,मम्मी शाम को चाय पी रहे थे, तब चाहत की मम्मी ने कहा ,''चाहत अब सारा दिन फोन मे लगी रहती है ''।डाटो तो सुनती नही।चाहत के पापा ने कहा,'' अरे आजकल इंटरनेट पर ही परेशानी का हल मिलता है  ,बच्चो को चाहिये ही'' ।
पर मै समझाउँगा  ज्यादा ना करे। चाहत अपने मे रहने लगी थी, ज्यादा  बात नही करती थी ,उसका व्यवहार बदल रहा था। 
   
शोभित की मम्मी बार बार कहती बेटा फोन रख दे पढ ले। शोभित ज्यादा टोकने पर घर वालो को जवाब देने लगा था ।क्या है मम्मी !जब देखो डाटती रहती हो, शोभित चिढ कर बोलता ।मुझे पता है क्या करना है।
और एक दिन चाहत के पापा ने शोभित के साथ रास्ते में देख लिया। चाहत के पापा कोई बहुत बड़ा धक्का था, वह चाहत को घर ले आए और उसे बहुत डांटा , समझाया।  पर  चाहत सुनने को तैयार नहीं थी ,उसे तो शोभित से ही शादी करनी थी। उधर चाहत के पापा ने शोभित के पापा को फोन करके घर बुला लिया ।

उन दोनों को बहुत समझाया गया उन दोनों की पढ़ाई का समय है उन्हें एक दूसरे पर ना ध्यान देकर, पढ़ाई की तरफ ध्यान देना चाहिए ।
ऐसा समझा के शोभित के परिवार वाले शोभित को लेकर  चले गए ।दोनो को समझा कर ,सोचा बचपना है ,अब पढाई मे मन लगायेगें।
इधर शोभित की दोस्ती भी गलत दोस्तो से हो गयी ,पढते नही थे ,बस घुमना बाइक लेके ।फोन पर बाते करना ,कालेज मे जाना पर पढना नही ।सब अध्यापक भी जानते थे पढता नही । बहुत बार घरवालो को बता दिया था ।घरवाले डाटते ,समझाते पर कोई फायदा नही।
         
इधर चाहत की मम्मी, पापा ने देखा की चाहत का पढ़ाई की तरफ बिल्कुल ध्यान नहीं है ,तो उन्होंने चाहत के लिए लड़के देखने शुरू कर दिए,  चाहत के मम्मी पापा को दुख था ।उनकी रातो कि नींद उड गयी थी ,कि उनकी लड़की गलत दिशा से कुछ बन नहीं पाएगी ना अपने पैरों पर खड़ी हो पा रही है । इधर चाहत का गुस्सा सातवें आसमान पर था क्योंकि उसकी शादी की बातें चल रही थी । चाहत किसी भी तरह शोभित को भूलने  को तैयार नहीं थी   ।
       अब ऐसा समय आया जब दोनो को परिवार की बदनामी का डर नही रहा और एक दिन दोनों ने कोर्ट मैरिज कर ली । चाहत और शोभित की घर वालों को यह जब पता चला तो उन्होंने यह रिश्ता है अस्वीकार करते हुए उन दोनों से नाता तोड़ लिया ।परिवार की बदनामी हुई अलग ।
     
एक ही लड़की थी उनकी और उसने इतना गलत फैसला मम्मी ,पापा तो जैसे टूट गए थे।घर से निकलना बंद कर दिया ।सारे  मौहल्ले मे बात फैल गयी ।
 शोभित के घर में भी यह हाल था उसकी एक छोटी बहन थी और भाई ने कम उम्र में यह फैसला लेकर मां बाप का बहुत दिल दुखाया था ।
      
शोभित और चाहत में वह शहर छोड़ दिया और दूसरे शहर में आकर एक छोटे से किराए पर मकान ले लिया। जितनी पॉकेट मनी थी और थोड़ा-थोड़ा दोनों ने अपना जोड़ा था। वह लेकर उनके लिए पर्याप्त नहीं था ।पैसों की जरूरत आनी ही थी ।शोभित ने अपने कुछ दोस्तों से कुछ उधार ले लिया था और कुछ उधर चाहत ने भी ले लिया था और समय पर लौटाने का वादा भी कर दिया ।प्यार का रंग कुछ दिनो मे उतर गया ।रूपये खत्म हो गये।

        धीरे-धीरे दोनों को जिंदगी का सही मतलब समझ में आ गया था ।ना अपने पैरों पर खड़े थे और ना कुछ इसमें समझदारी थी। प्यार ,मोहब्बत भूल कर दोनों को असली जिंदगी का मतलब समझ आ गया था ।इधर दोनों के परिवार वालों ने नाता तोड़ दिया था तो कोई ऐसा रास्ता भी नहीं था कि वह उनसे कुछ मांग सके या अपनी सहायता के लिए या अपनी समस्याओं को उनको बता सके ।
     
दोस्त भी कम उम्र के छोटे थे,  उनका सहारा नहीं था ।चाहत में ट्यूशन पढ़ाने से शुरू कर दिए थे। शोभित भी छोटी-मोटी नौकरी के लिए ढूंढने जाने लगा पर ना उसके पास में डिग्री थी और  नौकरी अच्छी का तो सवाल ही नहीं होता था ।हर जगह से ना सुनकर शोभित चिड़चिड़ा हो गया था और उसका गुस्सा चाहत पर उतरता। चाहत हमेशा उसको कहती ये क्या   शोभित इतनी मुश्किल से ट्यूशन पर के कुछ पैसे मिलते हैं और तुम केवल बसों की आने जाने ट्रेन में यह सब पैसे खर्च कर देते हो,जल्दी से कोई नौकरी क्यों नहीं ढूंढते ?                     

शोभित भी चिल्ला कर बोलता यह मेरे बस की बात नहीं नौकरी कोई सामने नहीं रखी कि मैं उठा लो उसे। जब नौकरी ढूंढने जाऊंगा तो पैसा तो खर्च होगें,   अगर सारा पैसा ऐसे ही खर्च हो जाएगा तो घर कैसे चलेगा ? चाहत ने भी जोर से बोला।
        दोनों कम उम्र के थे झुकने और समझने का दोनों कम उमर की थी। इसलिए समझदारी दोनों में ही नहीं थी , धीरे धीरे प्यार का भूत उतर रहा था ।आज चाहत को अपने एक फैसले पर बहुत पछतावा था ,उधर शोभित भी अब कुछ नहीं कर सकता था। 
   
    पति ,पत्नी अपने दुख मे हो तो  परिवार  एक साथ मिलकर चलाते हैं पर उन दोनों में तो चिड़चिड़ा हट और गुस्से के अलावा कोई रिश्ता नहीं रह गया था।   उनके परिवार वालों ने उनसे संबंध  तोड दिये  थे ,  जो वह उनकी इस समस्या का हल ढूंढते ।दोनों रिश्तो की समझ से अनजान थे। 
     शोभित इन  परिस्थितियों से घबरा गया और छोटेकाम मे जो रूपये मिलते ,उनकी शराब पी आता या रात भर आता नही ।गुस्से मे चाहत पर हाथ उठा देता और कहता कि सारी परेशानी की वजह तुम हो ।चाहत शोभित को समझा कर हार गयी थी । आज चाहत रोये जा रही थी उसे अपना घर आज कुछ ज्यादा याद आ रहा था ।कहाँ मम्मी पापा पलके बिछाये उसकी हर बात मानते थे । उस पर कभी हाथ नही उठाया। आज सब याद आ रहा था।

हद तो तब हो गयी जब शोभित शराब के नशे मे दोस्तो  को घर लाने लगा ।  और दोस्तो की आँखे चाहत को देखती । चाहत रसोई मे से नही निकलती जब तक उसके दोस्त चले नही जाते । चाहत से अब उस कमरे मे रहना मुश्किल हो गया । 

आस पडोस की सहेलियो को सब पता था ।उनके बच्चो को टयूशन पढाती थी चाहत ।अपनी बेबसी की बातें उनसे बताती और मन को हलका कर लेती । दोस्तो की रात की बात से  सबने उसे हिम्मत दी और उसको समझाया, समय  है अब भी मम्मी ,पापा के पास लौट जा ...अब शोभित पर यकिन नही किया जा सकता ।

तेरे मम्मी, पापा है ,एक दो बार मारेगे ,डाटेगें कुछ दिन नही बोलेगें पर तुझे संभाल लेगें।सबने कुछ कुछ रूपये इक्कठे किये और उसे बस मे बैठा दिया ,चाहत रोये जा रही थी और कह रही थी कि वो  कैसे कर्ज उतारेगी उन सब का जिन्होने  गलत राह  को  सही राह मे जोड दिया ,जो राह सही मन्जिल तक ले जायेगी  ।  वो मना लेगी.मम्मी, पापा को ।  वो मिलने आयेगी मम्मी ,पापा के साथ  । बस चल दी ...सहेलियो को दूर होता देख रही थी। आँखो मे आँसुओ से सब धूमिल दिखने लगा..पर वो बहुत दूर तक हाथ हिलाती रही । और सोचने लगी  पापा का हाथ पकडे , मम्मी की गोद मे सिर रख कर खुब सोऊँगी । 

सहेलियो ने उसके मम्मी ,पापा को फोन कर दिया और सब बता दिया था। जैसे बस रूकी ।वो सामान लिये नीचे उतरी ,मम्मी ,पापा आँखो मे आँसु लिये खडे थे ,उनकी लाडली घर लौट आई ।उनको  दोबारा जीने की वजह मिल गयी थी,  अब घर का भूला शाम को लौटे तो उसे भूला नही कहते।

चाहत भाग कर आई और रोये जा रही थी मम्मी ,पापा माफ कर दो ,अब कहना मानुँगी । उसके पापा ने गले से लगाते हुए कहा हाँ हाँ बैंक  की मेनेजर बनना है....समय रहते चाहत लौट आई थी मम्मी ,पापा के पास।
केवल मम्मी ,पापा ही ऐसे होते  है जो माफी माँगने से माफ कर देते है और हमेशा आपका भला ही चाहते है......
बच्चो को मम्मी पापा डाँँटे या टोके  ,तो बुरा लगता है पर वक्त निकलने पर जरूर 
गलत फैसले का अहसास हो जाता है ।
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चित्र ..गुगल आभार

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