रिश्ता मेरा तुम्हारा नहीं ,हमारा होता है।

रोहन क्या सारा काम मेरा ही है?' तुम कुछ हाथ नहीं बता सकते ।घर के  काम  तुम भी कर सकते हो अगर चाहो तो' रचना ने जोर से कहा ।रोहन क्या मतलब है तुम्हारा रचना?

 मेरा काम क्या? मैं काम नही कर रहा हूं ?सब तुम संभाल रही हो? मैं बाहर से सामान वामान सब ला रहा हूं ।नहीं रोहन, सारी जिम्मेदारी मेरे पर ही है। घर का काम भी बड़ा ही होता है ।रचना जोर से बोलती हुई किचन में चली गई।


"पूजा शुरू होने वाली है और तुम्हारे घरवाले अभी तक नहीं आए?" रोहन ने गुस्से से कहा ।'आ जाएंगे ,कुछ काम में होगा 'रचना ने कहा और तुम्हारे पापा ने भी तो कुछ दिन पहले नहीं बताया ।परसों तक तो बुला नहीं रहे थे ‌कल फोन कर दिया कि कल पूजा है।
तो समय तो लगेगा ही ।

रोहन भी गुस्से में बोला 'जब तक पक्का नहीं था किसको बुलाना है किसको नहीं।तो क्या करते?' हां मेरे परिवार वाले मेहमान है ।अपना क्युं समझोगे? अगर मैं भी ऐसा समझुं तो ?

रोहन घर के काम में लगा था।पूजा का सामान ,फल फूल सब ले आया था।  मेहमानों के लिए खाना, नाश्ता सब बाहर से ही बनवाया था।

अरे !रचना 'तुमने कपडे नहीं बदले'रोहन ने कहा बदल तो लिए है' रचना ने कहा। सूट क्युं पहना है ?मां ने साड़ी लाने कर दी थी पूजा के लिए ।रोहन ने कहा।
मुझसे नहीं बैठा जायेगा साड़ी में।हमारे  मायके मे साड़ी कोई जरूरी नहीं होती।रचना ने कहा

तुम्हारे नहीं होती तो कोई बात नहीं पर यहां तो पहन लो ।साड़ी ही पहनते हैं पूजा के लिए‌। वैसे भी तुम जींस ,सूट ,स्कर्ट ही रोज पहनती हो।आज साड़ी पहन लो।
रचना गुस्से में चली गई। और साड़ी नहीं पहनी ।रोहन का मूड देखते ही बदल गया।

बड़ों का मान रखने को ही पहन लो रचना। 'मेरा मन नही है ,मुझसे नहीं होगा।'रचना ने कहा
किसने कहा कि पूजा में सूट नहीं पहन सकते?


तभी रोहन के पापा , मम्मी  बाहर से आये।
क्या बात है फिर झगड़ा कर रहे थे क्या दोनों?दोनों चुप हो गये।

पूजा में सब मेहमान आये ,रचना के माता पिता भी । सबके जाने के बाद रचना के माता -पिता जाने लगे ।तब रोहन के पिता जी ने कहा । भाईसाहब आप आज रूक सकते हैं क्या? बहुत जोर देने लगे रूकने के लिए।

जी बस चलते हैं लड़की के घर रूकते नहीं हम। रचना और रोहन को अजीब लग रहा था ,कि क्युं बहुत कह रहे हैं रूकने के लिए?

अगर बच्चों का रिश्ता बचाना हो तब भी ?
जी क्या मतलब ?
ऐसी बात है तो रूक जाते हैं । सब बैठ गये

देखिये पहले  नई शादी थी तब लगता था बचपना है पर ...


रचना और रोहन का जी रोज का ही झगड़ा है। किसी ना किसी बात पर उलझ जाया करते  हैं । एक दूसरे को दोष देते रहते, सुनने को एक दूसरे की कोई भी तैयार नहीं होते ।हम दोनों ने ये समझा है कि मेरे माता पिता और तुम्हारे माता पिता। मेरा घर तुम्हारा घर ।झगड़ा बस ये है।रचना की मम्मी रचना को डाटती हुई बोली क्या बात है?तुमने हमें नही देखा सब परिवार कैसे मिल कर रहते हैं?

रचना के पापा भी समझाने लगे, ये ही बातें बड़ी हो जाती हैं।अभी गलती दोहराना नहीं ।रिश्तो को समझो ।उन्हें तोड़ने कि कोशिश नहीं करो।रचना रोने लगी। रोहन के पिता ने कहा रोहन की भी गलती है, रोहन को भी समझाइये। हम तो दोनों को समझा कर थक गये।

रचना के पापा कहने लगे ,गलती दोनों कर रहे हैं। सीख दोनों की ही है।' जब तक रिश्तो में 'मै' रहेगी तब तक सुखी जीवन नहीं हो सकता ।'रोहन की मम्मी ने कहा। पहले ये समझो की जरा जरा सी बात को बढ़ाओ मत। एक गुस्सा हो तो दुसरा चुप रहे ,बाद में शान्ति से बात बात करो। रचना और रोहन की नजरें नीचे ही थी।

रचना कहने लगी रोहन ने मुझे कभी नहीं समझा ‌।रोहन ने कहा ये ही मैं भी कह रहा हुं। तुम्हे घर का काम भी बड़ा लगता है। चाहे घर में मेड भी हो ।और मम्मी भी सहायता करती है तब भी।

जब देखो गुस्सा करती हो।
रचना ने कहा अच्छा तो तुम भी तो मेरा  बात नहीं सुनते।
हमारे घर ऐसा होता है बस ये जानते हो।
रोहन कहने लगा तुम भी तो वो नहीं करती जो मैं कहता हुं । जो तुम्हारी मर्जी हो वही करती हो। साड़ी नहीं बदली तुमने।

रोहन की मम्मी ने कहा जब तक मेरा तुम्हारा घर रहेगा ,मन में तब तक दूरी ही रहेगी। मिलकर समझो एक दुसरे को।

छोटी छोटी बातें बड़ी होती जाती ,दोनों में प्यार कम झगड़ा ज्यादा हो रहा है।

रचना ने कहा मैं नहीं चाहती ऐसा हो ,बात कुछ नहीं पर लड़ाई हो जाती है।अब बहुत देर तक समझाने पर सबको शर्मिंदगी महसूस होने लगी ।कि जरा सी बात बड़ों तक पहुंच गयी । दोनों एक दूसरे को देखकर गलती महसूस कर रहे थे।रोहन तुम कुछ कहो रचना के बारे में, रचना के पापा ने पूछा?

रोहन मैं भी नहीं सोचता ,मनाता रहता हुं रचना को ।ये नाराज होती रहती है। अब रचना तुम बताओ रोहन के बारे में?
कुछ हाथ नहीं बंटाते घर में ,मेरी बात को समझते नहीं।
रोहन कहने लगा मम्मी और तुम मिलकर कर लेती हो घर का काम । तो मुझे ऐसी कैसी जरूरत नहीं लगती ।मेड भी है । मैं बाहर का सब सभांलता हूं।
आज भी तुम दोनों रसोई मे ना रहो सब बाजार से ही लाया ।


रचना के पिता ने कहा बात जरा सी है ।पर दोनों की गलतियां हैं। बच्चे नहीं हो दोनो ।लड़ाई झगड़ों से निकालनी है जिंदगी क्या?


रोहन के पिता ने कहा अब क्या समझें दोनों ? आगे लड़ना है या मिल कर हल ढुंढना है?

रचना और रोहन ने एक-दूसरे को देखा। और कहा 'मिलकर हल ढूंढना है।' हम दोनों को समझा आ गया ।गुस्से से हल नहीं निकालना रचना ने कहा।

रोहन के पिता ने रोहन का हाथ रचना के हाथ पर रखते  हुए कहा करो वादा।कि रिश्ता मेरा या तुम्हारा नहीं करोगे । केवल हमारा ही कहोगे।

रचना ,रोहन एक साथ बोले वादा । रोहन कि मम्मी बोली चलो इनकी नयी शुरूआत के लिए , मुंह मीठा कराया जाय, अब एक एक राज भोग हो जाये।सब एक साथ बोले जरूर और मुस्करा दिये।


दोस्तों ,पति पत्नी के रिश्ते में 'मैं और तुम' नहीं 'हम 'होता है।
और रिश्ता मेरा घर  और तुम्हारा घर नहीं हमारा घर होता है।

मौलिक रचना
अंशु शर्मा
आज से रिश


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