पहरेदार मन के..

मेरा नाम राघव है और आज मैं हॉस्पिटल में अपनी पत्नी प्रभा की रिपोर्ट्स लेने के लिए जा रहा हुँ ।कदम आगे नहीं बढ़ रहे ,हाथ पैर कांप रहे हैं ,दिल घबरा रहा है ।
।आज हम दोनों की कोशिश कामयाबी की तरफ बढ़ेगी या नाकामयाबी का एक चादर ओढ़ ली जाएगी

हैलो !   सर मुझे प्रभा की रिपोर्ट लेनी थी  ।क्या रिपोर्ट आ गई है ,जी हां बिलकुल रिपोर्ट आ गई है दिल बहुत जोर जोर से धड़कने लगा था ।क्या होगा ?क्या होगा ?बस सर आपको थोड़ी देर के लिए बैठना होगा प्रिंटर में कुछ प्रॉब्लम आई है ।आधे घंटे का काम बचा है आप लेते ही जाए रिपोर्ट वैसे मैं मेल कर दूंगा आपको। नहीं, मुझे  यहाँँ से कि मुझे डॉक्टर के जाना है तो मैं थोड़ी देर इंतजार करूं
करूँगा ।जी, बिल्कुल

क्या आप  बताएंगे की रिपोर्ट में क्या है?रोहन ने ड़रते हुये पूछा ।
जी हाँँ एक मिनट  ,प्रभा जी  की रिपोर्ट नॉर्मल आ गई है ।राघव सुनती ही धमम.. से कुर्सी पर बैठ गया और बच्चे की तरह रोने लगा। यह खुशी और सुकून की आंसू थे ,जो यकीन नहीं कर पा रहे थे। राघव कुछ दिन पहले की ख्यालों में खो गया ।

कितना खुशनुमा घर था ,दो बच्चे छोटे पूरब और दिशा। सबके साथ कितने प्यार से रह रहे थे ।सकारात्मक का उसके जीवन पर हावी थी जो भी उस से राय लेने आता उसका शुक्रिया अदा बार बार करना नहीं भूलता ।

खुशमिजाज थी ।सबको अपना बना लेने वाली उसमें ताकत थी। जहाँँ पहुंच जाती रौनक हो जाती ।मन में कोई किसी के लिए मैल नहीं था। जबकि कोई दुखी होकर आता तो उसको हौसलों के साथ ही वह वापस जाता।

याद है जब मैने प्रभा से कहा ,''प्रभा जल्दी तैयार हो जाओ ''।क्यों कहाँँ जाना है ? रसोई से निकलते हुए कहा ।अरे तुम्हें याद नहीं साल में एक बार मेडिकल का टेस्ट हम कराते हैं ।आज उसी के लिए सोचा है ।टाइम भी है चलो दोनों चलते हैं ।चलो करा कर आ जाते है।प्रभा जाने को तैयार नही थी फिर भी जबरदस्ती ले गया था।

प्रभा बार बार कहती रही क्या जरूरत थी इतने महँगें टेस्ट कराने की ।नही..प्रभा समय के साथ जरूरी है ये सब आजकल पता ही नही चलता कुछ भी हो जाये ।तुम भी बिना बात पीछे पड़ ही जाते हो कितना काम है मुझे आज । प्रभा कहती हुई काम मे लग गयी  और रिपोर्ट आने पर जो सोचा ना था ,वह हो गया ।

प्रभा को फर्स्ट स्टेज का कैंसर था । डाक्टर  के कहते ही मेरे तो दिल घबराने लगा था। स्टेज वन है तो जल्दी ही सही हो जाएगा, घबराने की बात नहीं। कैंसर, कैंसर का नाम ही जानलेवा बीमारी मेरी प्रभा को कैसे हो सकता है? वो भी  इतने खुश मिजाज! इतना अच्छे से अपने आप को स्वस्थ रखने वाली और ना जाने कैसे? जिस दिन डॉक्टर के जाना था प्रभा को लाख बहाने बनाने की सोच रहा था कि कैसे बताऊँ की उसे कैंसर है ,बताऊँ या ना बताऊँ।
 की प्रभा ने  मुझे और मेरे बेटे पूरब  और दिशा को आपस में बात करके सुन लिया था।

 प्रभा का चेहरा मुरझा गया और जोर जोर से रोने लगी ।राघव मुझे ही क्यों? इसका जवाब मेरे पास नहीं था ,बस मैं उसको सांत्वना देता रहा और हिम्मत दिलाता रहा कि यह पहली स्टेज  है इसमें कोई घबराने वाली बात है।

पूरब  और दिशा भी घबरा चुके थे पर मम्मी को हिम्मत देने से पीछे नहीं हट रहे थे ।इलाज शुरू हो गया था और दिन एक एक दिन  साल के बराबर बीत रहा था ।प्रभा को कमजोरी आती जा रही थी उसने तो जैसे मान ही लिया था कि वह कभी सही नहीं हो पाएगी ।

हमेशा उसके मुंह से एक ही बात नहीं करती राघव अब मैं नहीं बच पाऊँगी , मेरे बाद मेरी बच्चे कैसे रहेंगे? तुम कैसे रहोगे? मैं उसे समझाता था, सकारात्मक सोचो ,अच्छा सोचो।

 ऐसा नहीं है कि आखिरी चीज है यह शुरुआत है और हम इसे जीत जाएंगे ।नहीं ,राघव मैं नहीं बचुँगी बस वह दिन के बाद प्रभा ने जैसे सब से बात करनी बंद कर दी ।उसने उठना बैठना बंद कर दिया ।बाहर आना जाना कम कर दिया। किसी से फोन पर बात नहीं करती
 थी ।दिल मे घबराहट का जन्म इतना हो गया कि वो लेट कर सो नही पाती ।बैठी रहती ।प्यार से लेटने को कहता तो डर कर हाथ पकड़ लेती ,काँपने लगती।

एक कमरे में बेड पर एक कोने में बैठी रहती बुलाने पर भी नहीं आती, जैसे उसने एक घबराहट और नकारात्मक विचारों की चादर ओढ़ ली थी ,ना देखना चाहती थी। कुछ अच्छा ना किसी को कुछ अपने पास आने देना चाहती थी। समझा समझा कि मैं और बच्चे थक गए थे।

 पर समझ नहीं आ रहा था ।यह तो प्रभा है जो दूसरों को हौसले देकर भेज देती थी ।जब कोई परेशान होता था तो उसकी समस्याओं को चुटकी भर में हल कर देती थी। पर आज वो प्रभा नदारत थी ।सामने आई परिस्थितियो से घबरा गयी।


 उसे डर था कि मैं  जिंदगी में कुछ बचा ही नहीं है। एक घबराहट हो रही थी चारों तरफ सन्नाटा लगता था उसको ।दवाइयां चल रही थी। कमजोरी चेहरे पर साफ दिखाई दे रही थी जबकि डॉक्टरों ने कह दिया था कि अगर प्रभा ऐसे ही चुप रही और ऐसे ही सोचती रही तो दवाइयां से नहीं करेंगी ।

पर दिमाग जैसे सुन हो गया था ।प्रभा ना सुनना चाहती थी ।ना कुछ बोलना ।मेरा दिल भी घबराने लगा था। मैं प्रभा का हाथ अपने हाथ मे पकड़ा था ।टूटते हुए देखा था ।अब समझाने के लिए मेरे शब्द भी नहीं बचे थे ।

और वह समझने को तैयार ही नहीं थी मैं बस रो कर चुप हो जा था और वह चुपचाप बस बैठी रहती रात भर सोना नहीं चाहती थी। मैं लेटे रहता  तो  डर से मुझे उठने नही देती ।कभी उठने को कहता तो  उसका हाथ मेरे हाथ को पकड़े रहता कसकर ताकि मैं भी ना चला जाऊं ।

कभी मैं कभी पूरब कभी दिशा   उसके पास बैठे रहते ।रात को ना लेट ने की वजह से मैंने उसके पीछे एक ढलान सी बना दी थी जिससे   बैठे बैठे सोने की स्थिति जैसी रहे हॉस्पिटल के बेड जैसा ।

घबराहट हावी हो जाती थी प्रभा को समझाना बेकार हो गया ।आज मन बहुत परेशान था और मैं रो रो कर थक गया था। सोचने समझने की शक्ति खत्म हो गई थी ।टीवी खोल कर बैठा तो कितने ऐसे उदाहरण मुझे दिखाई दिए जो कि जिंदगी की जंग को लड़कर वापस आई थी ।मनीषा कोइराला और ना जाने कितने उसने मेरे मन में एक उम्मीद की किरण जगाई ।

और मैंने भी कसम खा ली थी कि मैं प्रभा को ऐसे रोते हुए तो नहीं देख सकता और ना ही मैं उसे इतनी नकारात्मक विचारों में गिरा हुआ रहने दूँँगा मैं समझ गया था कि उसकी केवल मन का खेल है उसने अपने मन के बाहर वह पहरेदार बैठा रखे थे जो सकारात्मक विचार  और नकारात्मक ।

जिसमें वह सकारात्मकता को अंदर आने ही नहीं देना चाहती थी। केवल नकारात्मक सोच उसने अपने मन दिमाग में बैठा लिया था ।मैं भी अगले दिन पूरे जोश के साथ उठा और सुबह ही मैंने कहा से कहा गरमा गरम कॉफी ।नहीं राघव मेरा मन नहीं नहीं प्रभा ने बेमन से कहा ।आज से सुबह की कॉफी और चाय मैं तुम्हें ही बना कर दूँँगा। और मेरे हाथ की चाय की होगी तो तुम्हारा यह सब आलस सब भाग जाएगा और सुबह ही हम 4:00 बजे उठकर बाहर वॉक के लिए जाएंगे ।नहीं तो तुम्हारी कमजोरी बहुत है तो हम पार्क में बैठेंगे। यह क्या है ?प्रभा ने कहा ।

नहीं तुमने बहुत उदासीनता को अपने अपना लिया है प्रभा ऐसे नहीं जब तक तुम नहीं अपने मन में सोचो कि कि मैं सही होंगी ।जब  तक तुम सही नहीं हो पाऊंगी और  मै हार नही मानुँगा ।मुझे तुम्हें सही करना है तो मैं कुछ नहीं सुनूंगा।

 तुम 2 मिनट में तैयार हो जाओ और प्रभा मेरा मन रखते हुए तैयार होकर पार्क में बैठ गए।
 हम दोनों जाकर बस बैठे रहे आसपास के लोगों को देख कर मन को शांत हो रहा था हवा ठंडी-ठंडी चेहरे पर आकर बहुत अच्छा मन हल्का महसूस हो रहा था प्रभा को भी कुछ तो मुझे लगा कि उसे अच्छा लगा बस उसे घर से निकलने का मन नहीं होता था और शाम को ऑफिस आने के बाद मैं नहीं या पूरब ,दिशा  हम तीनों में से कोई भी हमने उसको शाम को पार्क में ले जाता जिसमें बच्चे खेलते कभी कुछ देखते प्रभा को अच्छा लगने लगा था ।

प्रभा लेकिन धीरे-धीरे उसको घर से बाहर कुछ अच्छा महसूस होने लगा था और मैंने उसके लिए 5:00 बजे से 6:00 बजे तक मेडिटेशन सेंटर में अपना और प्रभा का नाम लिखवा दिया वैसे तो मेरा बिल्कुल मन नहीं था। ना मुझे यह सब पसंद था पर मुझे प्रभाव के लिए यह सब करना था प्रभा चौक गई थी आप चलोगे आप तो बिल्कुल नहीं जाना चाहते। नहीं अब मैं सोच रहा हूं कि अपने पर भी थोड़ा ध्यान दूं सुबह मेडिटेशन सुबह शाम पार्क और घर में यह सब को बता दिया गया था कि टीवी पर कुछ भी समाचार सीरियल बेकार कुछ नहीं देखा जाएगा केवल सब टीवी पर जो कॉमेडी सीरियल आ रहे हैं वही देखा जाएगा बच्चे प्रभा टीवी ,यू टयुब ,मोटीवेशन की बाते सुनाते। कपिल शर्मा शो या जो भी कुछ हंसी मजाक का होता था तो प्रभा चेहरे पर थोड़ी सी मुस्कान पाई जाती ।किमो थैरपी भी शुरू थी जो कैंसर के लिये जरूरी थी ।दवाइयाँ चल रही थी ।

अब इसका असर धीरे-धीरे होने लगा था जो ।  रात को सोते समय हल्का सा म्यूजिक संगीत लगा देता था और सुबह उठते ही अच्छे से भजन यह मेरा रोज का काम हो गया था और घर में भी जितना अच्छा उसको खिलाने में ध्यान रखा जा सकता था मैं रख रहा था पर 2 महीने के बाद इस बात का असर प्रभा के चेहरे पर दिख रहा था वह हंसने मुस्कुराने लगी थी।

किसी का फोन आने पर उठाकर बोल देती थी कीमोथेरेपी स्टार्ट हो गई थी दवाइयां चल रही थी और उसके साथ मेडिटेशन और प्रकृति की तरफ उसका ध्यान संगीत में रुचि यह सब चीजें उसके शरीर के हारमोंस चेंज कर रही थी।
 और उसका मन सकारात्मकता की तरफ बढ़ रहा था करते करते 6 महीने साल भर होने को आया।आज।  हमारी परिवार की तपस्या सफल हुई पूरब और दिशा  को फोन पर जो मैंने बताया तो खुशी का उनके ठिकाना नहीं था

उनकी मम्मी ने कैंसर से लड़कर जिंदगी हासिल कर ली थी और मैंने भी सोच लिया था आज मैं प्रभा के साथ कल  समुद्र के किनारे बैठ कर सुबह का सूरज उगता हुआ देखूंगा और लहरों को देखूंगा जो उछल उछल कर आती है और बाद में शांत हो जाती है वह चलती लहरें बिल्कुल हमारे जिंदगी की तरह ।आज बच्चे बहुत खुश होगें मम्मी के लिये । बहुत सरप्राइज सोचे होगें।

दोस्तों बीमारी तो सबको होती है पर बीमारी का असर विचारों के बदलने से बहुत पड़ता है ।
यह हमारा मन पहरेदार हैं जो सकारात्मक और नकारात्मक विचारों को अंदर लाते और निकालते हैं दवाइयां काम करती है पर विचारों पर नियंत्रण मन ही करता है जब भी हमारे पास नकारात्मक विचार आते हैं तो हमारा मन ही है जो उन्हें नियंत्रित करता है।

 यह बहुत रिसर्च में आया है कि नकारात्मक विचार से मस्तिष्क पर स्ट्रेस हार्मोन का प्रभाव पड़ता है और नर्वस सिस्टम इस मोड़ पर होता है कि सुरक्षा तंत्र काम नहीं करने लगता इन सब चिकित्सा विज्ञान मानता है मन स्वस्थ तो आप स्वस्थ कई बार यह भी देखा गया है कि आयुर्वेदिक में मनोवैज्ञानिक स्थिति से मरीजों को ठीक किया जाता है उन्हें खीरे के पानी का इंजेक्शन चीनी के कैप्सूल कुछ इस तरह की चीजें दी जाती है जो दवाइयां नहीं होती और उनके मन को कंट्रोल करती है कि मैं सही हो रही हूँँ ....।

सुख के बाद दुख आया है तो दुख के बाद फिर सुख आएगा जब खुशी ही नहीं ठहरी तो दुख भी नहीं ठहरेगा ।आध्यात्मिक सहारे की मदद से नकारात्मक प्रभाव को सकारात्मक में हम बदल सकते हैं उसके बदलने से दिव्यता महसूस कर सकते हैं और हमारा मन निर्मल सुखद हो जाता है और हम बीमारी से जीत पा लेते हैं ऐसे बहुत उदाहरण देखने को मिले हैं जिन्होंने अपनी बीमारी रूपी लड़ाई जीती है मन के हारे हार है मन के हारे जीत ।
सर आपकी रिर्पोट ।ओह हाँ हाँ जैसे ध्यान टुटा आवाज से । और मै रिर्पोट लेकर तेज कदमो से घर की ओर बढ़ चला।


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