बचपन में बहुत कुछ छूट गया ।

बचपन में बहुत कुछ छूट गया.....


तुम रोज रोज इतनी मंहगी आइसक्रीम बच्चों को ले आते हो।आदत खराब हो जायेगी। सिया ने नील से कहा।
देखो सिया ,बचपन में मुझे कभी महंगी आइसक्रीम नहीं दी पिता जी ने,पर रूपये नहीं थे। और जब थे तब भी नहीं दिलायी।जो मुझे नहीं मिला ,मैं बच्चो को तरसाऊंगा नहीं।

नील, तुम्हें समझाकर थक गयी हूं। कम खर्चा करो ।घर में भी जरूरतें है।गुस्से मे
सिया  बोली।(
कुछ दिन बाद) नील कहां गये थे ? देखो सामने, सिया ने देखा राहिल साइकिल पर!
मम्मी ,पापा मेरी बीस गेयर की साइकिल लाये हैं।

नील, वो जो रूपये थे बैंक में ,तुमने इतनी महंगी साइकिल पर खर्च कर दिये।वो मकान की किश्त के थे।सिया गुस्से में बोली।

सिया ,सब बच्चों पर गेयर की साइकिल थी।उसका तीन दिन बाद जन्मदिन भी है ।सबसे ज़्यादा गेयर की लाया हुं।याद है जब बचपन में सबके पास  साइकिल होती थी , बस मेरे नहीं तो कितना मन दुखता था। बच्चों के साथ नहीं होने दुंगा।नील ने कहा।सिया बहस नहीं करना चाहती थी पर बहुत परेशान रही सारा दिन।

 रात को राहिल के जन्मदिन पर बहुत बड़ी पार्टी करने की सोच रहा हुं नील ने कहा तुम क्या कहती हो सिया ?
बड़ी क्युं?इस महिने कितना बेफिजूल खर्च किया नील तुमने।
अभी पूरा खर्चा पड़ा है महिने का।
तब क्या बच्चे के जन्मदिन पर कटौती करेगें?नील ने गुस्से में बोला
मैं कब कह रही हुं कि "मत मनाओ, पर घर में छोटा भी कर सकते हैं।"
अरे ! मैंने वादा किया है बड़ा करेगें होटल में,और जादूगर भी बुलायेंगे,मिक्की  डोनाल्ड भी बच्चों को खुश करने के लिए।
रिर्टन गिफ्ट भी  बहुत बढ़िया।

क्या कह करें हो नील? बेकार की बात ।राहिल बच्चा है उसे तो बहला सकते हैं।
नहीं सिया, जो बचपन में नहीं हुआ मेरे साथ,वो नहीं होगा ।कभी बडा जन्मदिन नहीं मनाया मेरा। मन में यह गया ।

तुम बच्चों कि आदत बिगाड रहे हो।कहीं ऐसा ना हो कि राजा की तरह  देते हुए  बाद में पछताना पड़े। कहीं तुम्हारा छुटा हुआ बचपन , बच्चों को तुमसे पराया ना कर दे।उनको कम में गुजारा करना नहीं सिखाया तो परेशान रहोगे।


जितनी चादर हो उतने पैर पसारने चाहिए।
मना करने के बाद भी नील ने जन्मदिन बड़ा किया।

कुछ सालो  बाद ,  बड़े होने पर बच्चों कि आदत बिगड़ चुकी थी।उन्हें भी वही चाहिए था ,जो सबसे बढ़िया होता था।सबसे बढ़िया फोन ,बाइक,टीवी ,लैपटाप।
नील की कमाई कम पड़ने लगी।  बहुत बार नहीं दे पाता था या उधार लेना पड़ता।क्युंकि बच्चों को वो हर कीमत पर चाहिए था।


बच्चों को माता पिता दे सकते हैं या नहीं कुछ भी फर्क नहीं पड़ता था।नहीं मिलने पर ,आज बच्चे दो जवाब दे जाते। कि आपने किया ही क्या है हमारे लिए?
पर अब बहुत देर हो चुकी थी।कुछ समझाने के लिए बच्चों को।

मौलिक रचना
अंशु शर्मा







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