दिल की डोर दिल तक
सुजाता ने अपने बेटे नील के लिए लड़की ढूंढने के लिए सभी रिश्तेदारों, दोस्तों से कह दिया था। उसे एक बहुत अच्छी लड़की की तलाश थी। वह अपने पति राघव से इसी बात की चर्चा करती कि जब दुल्हन इस घर में आएगी तो घर कितना खुशहाल हो जाएगा। चाँद सा टुकड़ा लाऊँगी अपने राजकुमार के लिये नील से भी बार-बार पूछती की लड़की तुझे कैसी चाहिए ? पर नील हँस कर टाल देता था। क्या मम्मी अभी कहाँ ! मुझे बहुत कुछ करना है।
उम्मीद नहीं थी कि नील फोन पर अपनी पसंद की लड़की को चुनकर उसके सामने रिश्ते का प्रस्ताव ले आएगा, सुजाता के लिये ये एक बहुत बड़ा धक्का था। शाम को दो कप चाय के साथ सुजाता अपने पति के पास बालकनी में बैठ गई। राघव ने पूछा-
क्या हुआ सुजाता ? आज चीनी डालना भूल गई चाय में ?
अच्छा...
सुजाता का ध्यान विचारों से हटकर चाय की तरफ गया-
मैंने ध्यान ही नहीं दिया अभी लाती हूं।
सुजाता चाय के लिए चीनी ले कर आई और चम्मच से कप में घुमा कर मिलाती जा रही थी, पता नहीं कैसी होगी नील की पसंद, हमसे घुलेगी मिलेगी की नहीं। मन ही मन उधेड़ बुन में लगी थी।
राघव ने कहा, बड़ी चुप-चुप हो क्या बात है ? नहीं, ऐसा कुछ नहीं है आज सुबह नील का फोन आया था। उसने बताया कि माँ, आपको लड़की देखने की जरूरत नहीं है। मैंने लड़की पसंद कर ली है।सुजाता के पति को जब उसने नील से हुई बातचीत के बारे में बताया तो वो पूछने लगे कि अच्छा कौन है लड़की ? कहां से है ? क्या करती है ? कुछ पूछा नहीं तुमने ?
सुजाता ने जवाब दिया-
नहीं, मैंने सोचा मिल कर बात करेंगे कल आ रहा है।
अगले दिन नील की पसंद का नाश्ता और खाना बनाकर फुर्सत से जैसे ही बैठी तभी नील आ पहुंचा। आते ही मम्मा-मम्मा करता हुआ गले से लिपट गया। क्या बात है ? आज बड़ा खुश है। सुजाता ने बोला।
इस पर वो कहने लगा कि मैंने आपको माही के बारे में कल बताया था ना ! यह देखिए यह उसकी फोटो।
कुछ घबराई नजरों से फोटो को देखने लगी। लड़की अच्छी थी। वैसे भी ना कहने का तो सवाल ही नहीं उठता था। नील की पसंद जो थी पर अपने लिए अपनी तरह से रिश्तेदारों में जान-पहचान की लड़की देखने की उसकी इच्छा हमेशा रही थी।
राघव ने सुजाता को इस बात के लिए पहले ही समझा दिया था कि नील को ही जिंदगी बितानी है। नील की पसंद ही माननी चाहिए। एक तरह से सुजाता भी अपने मन को समझा चुकी थी और अपने बेटे की खुशी में खुश रहना चाहती थी।
कैसी है मम्मा ? नील ने उत्सुकता से पूछा ? प्यारी है, कहां रहती है ? क्या करती है ? सुजाता ने जवाब देते हुए उससे कई सवाल कर डाले। माँ मेरी कंपनी के पास एक कंपनी है उसमें जॉब करती है। उसके घर में उसके मम्मी-पापा और एक छोटा भाई है। आपसे मिलवाना चाहता हूं।
नहीं बेटा, तुमने पसंद कर ली तो हमने पसंद कर ली। उसके पापा ने कहा उसके मम्मी-पापा बात कर ले फिर इस रिश्ते को आगे बढ़ाएंगे।
नील ये सुनकर बहुत कुछ हुआ और माही के मम्मी-पापा का नंबर तुरंत अपने मम्मी-पापा का दे दिया। कुछ दिन बाद दोनों का रिश्ता पक्का कर दिया। माही सावँले रंग रूप की थी हां, आँखे ज़रूर बड़ी थीं, लेकिन उसे देख कर सुजाता को लगा कि मैं तो इससे अच्छी ढूढँकर लाती, गोरी चिट्टी पर मन मसोस कर रह गयी।
सगाई धूमधाम से हुई। शादी भी हो गई पर सुजाता को चिंता थी कि कोई मेहमान बहू के साँवले रंग पर ना कुछ बोल दे। लेकिन उसने देखा माही के चेहरे पर एक मुस्कान रहती थी। दुल्हन थी माही पर फिर भी सबका ध्यान रख रही थी, आपने पानी लिया ? कुछ खाया ? सब रिश्तेदार तारीफ करते नहीं थक रहे थे, पर माही ज्यादा बोलती नहीं थी। शायद उसकी आदत ही ऐसी थी कम बोलना। सुजाता को माही से ज्यादा बातें करने का समय नहीं मिला। पहले मेहमान रहे फिर वह हनीमून पर चले गए। वहां से लौटे तो दोनों की छुट्टियां खत्म हो गई थी और दोनों दिल्ली लौट गए।
नील ने दो कमरों का एक मकान किराए पर लिया हुआ था। माही और वह दोनों साथ ही निकलते थे। दोनों की कंपनी पास-पास थी। फोन पर थोड़ी बहुत बात हो जाती थी क्योंकि सुजाता को हमेशा राघव से माही की ही बात करनी होती थी। वह हमेशा कहती माही शायद हमें पसंद नहीं करती। सुजाता को शिकायत होती थी की वो दोनों घर नहीं आते। इस पर उसके पति राघव उसे समझा देते कि उनको छुट्टी नहीं मिल रही होगी। अभी शादी पर ली तो थी कितनी सारी छुट्टी, पर सुजाता के मन में एक डर था, बिना जान पहचान शादी हुई है, माही के कम बोलने की आदत की वजह से सुजाता और माही शादी होने के बावजूद भी एक दूसरे को ज्यादा करीब से नहीं जान पाये थे।
एक दिन नील ने फोन किया और कहा, आप और पापा कुछ दिन के लिए आ जाओ। हम दोनों को छुट्टी नहीं मिल रही है, लेकिन आप लोग यहां आ जाइये साथ मिलकर रहेंगे। सुजाता ने बहुत आन-कानी करते हुए मना किया नहीं, अभी नहीं फिर कभी, लेकिन नील मानने को तैयार ही नहीं था, अच्छा तेरे पापा से पूछ कर बताऊंगी । राघव के हां कहने पर सुजाता की खुशी बढ़ गई और उसने एक लिस्ट तैयार कर ली कि क्या-क्या राघव के साथ वह बाजार से जाकर नील की पसंद का लेगी, माही की भी खाने पीने की पसंद उसे पता चल चुकी थी इसलिए उसने लड्डू ,पंजीरी और घर का भी काफी सामान बना लिया था और बाजार से भी उनके लिए शर्ट और सूट खरीद लाई थी। आखिर पहली बार बेटे और बहू के पास रहने जा रही थी।
राघव और सुजाता टैक्सी करके दिल्ली पहुंच गए। सुजाता सोचने लगी- माही ऑफिस होगी छुट्टटी तो ली नहीं होगी दरवाजे पर ताला नहीं था। सुजाता को अच्छा महसूस हुआ। डोरबैल बजाते ही माही ने पैर छुये और नाश्ता और चाय लेकर आ गयी।
माही ने कहा कि आप नहा-धोकर कपड़े बदल लिजिये। मैं थोड़ी देर में खाना लाती हूं सामने नया टॉवल रख दिया। ये देखकर राघव मुस्कुराए। थोड़ी टेढ़ी निगाह से सुजाता थोड़ी सी मुस्कुराहट के साथ नजरें नीची करके नाश्ता करने लगी देखा ! बहू कितनी समझदार है ,राघव के ये कहने पर सुजाता कुछ नहीं बोली, कहती भी क्या ?
शाम को जब नील आया तो सब खुशी से मिले। सुजाता सामान दिखाने लग गयी, सब खुश थे। नील, सुजाता और राघव बातें कर रहे थे. माही अपने इधर-उधर के काम समेटने में लगी थी। बस एक छोटी सी मुस्कुराहट लिये। रात का खाना बाहर से ही ऑर्डर कर दिया था सबने मिलकर खाना खाया, खा-पीकर सब सोने चले गए।
माही ने दो चादर, एक जग पानी और गिलास सब रख दिया था। सुजाता को मन ही मन खुशी हो रही थी, जैसा उसने सोचा था माही वैसी ही थी। घर को घर समझने वाली अगले दिन ऑफिस था, नील बताता था की दोनों कार्न फ्लेक्स खा कर जाते थे सुजाता ने सोचा उन्हें कम्पनी में मिल जाता होगा खाना इसलिए कुछ ज्यादा खा कर नहीं जाते उसने सोचा, क्यों ना मैं अपने राघव के लिये कुछ बना लूँ तभी माही की आवाज़ से उसका ध्यान टूटा माँ नाश्ता रेडीमेड है ढोकला, नील ने बाजार से ला दिया था।
सुजाता ने देखा माही नया सूट पहन कर तैयार थी। ये वो सूट था जो सुजाता लायी थी माही ने आगे बोला खाना बना दिया है, खा लीजिएगा। अपने दिये सूट में माही को देखकर सुजाता को खुशी महसूस हुई कि माही ने दिये का मान रखा, सुंदर लग रही हो माही। सुजाता ने धीरे से कहा और तुरंत बात पलट दी अरे, मैं बना लेती नाश्ता।
माही ने कहा नहीं माँ, आप क्यों काम करेंगी ? अच्छा चलते हैं कहकर गले लग कर ऑफिस के लिये निकल गयी।
सुजाता ने माही की आँखें पढ़ ली थीं कि बिजी होने पर भी छोटी-छोटी बातों का ध्यान रख रही थी माही, राघव सुनो... सुजाता ने अपने गालों पर हाथ रख कर कहा, मुझे माही के गले लगने का स्पर्श देर तक महसूस हो रहा है। आज बेटी होती तो ऐसे ही गले लगती। राघव ने भी अखबार पढ़ते-पढ़ते भावुक दिल से हाँ कहा।
लेकिन अगले दिन राघव से सुजाता कहने लगी क्या फायदा आने का ? दोनों को छुट्टी भी नहीं है और टाइम भी नहीं। बिता पाते हमारे साथ राघव ने भी हां में हां मिला दी सुजाता कहने लगी कि एक-दो दिन में हम चले जाएंगे।
अगले दिन माही सुबह ही नाश्ता बनाने मे लग गयी। सुजाता ने माही से कहा, तुम तैयार हो जाओ ये मैं कर लूँगी नही माँ, आज शुक्रवार है हम दोनों ने छुट्टी ली है, और शनिवार इतवार की तो छुट्टी होती ही है हमारी तीन दिन आपको ये शहर घुमा देंगे, मन ही मन सुजाता मुस्कुरा रही थी कि बेटे-बहु के साथ पूरा दिन बिताएंगे।
चारों घूमने निकल गये, जहाँ भी संभल कर चलना होता माही तुरंत सुजाता का हाथ पकड़ लेती। तीन दिन पता ही नहीं चले, अगले दिन सुजाता सुबह ही उठ कर रसोई में आ गयी। माही तुरंत बोली मम्मी जी कुछ चाहिये नहीं, सुजाता ने कहा। मैं तो इसलिये चली आई कि दोनों मिलकर काम करेंगे, सब काम जल्दी हो जाएगा. ये सुनकर माही मुस्कुरा दी। दोनों ने मिलकर नाश्ता बनाया और माही ऑफिस के लिए तैयार हो गई। नील और माही चले गए। सुजाता राघव से माही की तारीफ किये जा रही थी और राघव मुस्कुरा रहे थे।
तुम वही हो जो माही के लिए इतना डरी बैठी थी। सुजाता धीरे से मुस्कुरा दी थी। शाम को नील और माही ऑफिस से आए। खाना खाते समय राघव ने कहा, नील हम कल जाने की सोच रहे हैं, नील ने कहा अभी तो कुछ और दिन अभी तो खूब मन लग रहा है। आप अकेला तो महसूस नहीं कर रहे। नहीं नील बेटा, तुम्हारी मम्मी साथ हैं ना तो दिन आराम से कट जाता है।
कभी टीवी देख लेते हैं और कभी अखबार पढ़ लेते हैं ऐसे में समय का पता नहीं चलता।
नील ने कहा तो फिर क्यों जाना है ? खाना खाने के बाद बर्तन समेट कर माही कमरे में आकर बोली,
"मम्मी जी शाम को ऑफिस से आकर बहुत अकेलापन लगेगा। आप दोनों के आने से रौनक हो गई है। थोड़े दिन और रुक जाइए। या मैं तो कहती हूं कि आप हमारे साथ ही रहिए वैसे भी अब पापा जी रिटायर हो गए हैं कोई काम नहीं है।'' आप दोनों का ध्यान हम पास रहकर ज्यादा अच्छे से रख पाएंगे। जो माही बोलती नहीं थी वह आज बड़ी-बड़ी बातें कर रही थी।
राघव और सुजाता एक दूसरे को देख कर मुस्कुरा रहे थे। सुजाता ने माही के पास आकर उसका हाथ अपने हाथों मे ले लिया कहने लगी कि कितना ध्यान रखती हो तुम हम सबका। नील बड़ा किस्मत वाला है जो हमें एक अच्छी बहू मिली। इतनी अच्छी तो मैं भी ढूंढ नहीं पाती। ये सुनकर माही सुजाता के गले लग गयी। माही बोली मम्मी जी, मैं भी किस्मत वाली हूं जो ऐसा परिवार मिला। प्यार और अपनेपन की वजह से दिल की बात दिल तक पहुंच गयी थी। आजकल दोनों के रिश्तों में बदलाव आया है। समझदारी और प्यार से रिश्ते मजबूत होते हैं।
आपको ये कहानी पसंद आई हो तो प्लीज़ लाइक करे और फालों करे ।
धन्यवाद
मौलिक रचना
अंशु शर्मा
27-2-2019
धन्यवाद
मौलिक रचना
अंशु शर्मा
27-2-2019
Comments
Post a Comment